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जैन धर्म-दर्शन लग्न और ६. निमित्त । देवेन्द्रस्तव (देविदथय) प्रकीर्णक में ३०७ गाथाएँ हैं । इसमें बत्तीस देवेन्द्रों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। मरणसमाधि (मरणसमाही) का दूसरा नाम मरणविभक्ति ( मरणविभत्ती) है। इसमें ६६३ गाथाएँ हैं। यह प्रकीर्णक यथानिर्दिष्ट आठ प्राचीन श्रुतग्रन्थों के आधार पर निर्मित हुआ है : १. मरणविभक्ति, २. मरणविशोधि, ३. मरणसमाधि, ४. संलेखनाश्रुत, ५. भक्तपरिज्ञा, ६. आतुरप्रत्याख्यान, ७. महाप्रत्याख्यान और ८. आराधना ।
आगमिक व्याख्याएँ:
जैन आगमों की प्राकृत व्याख्याएँ तीन रूपों में मिलती हैं: नियुक्ति, भाष्य और चूणि । नियुक्ति और भाष्य पद्य में हैं तथा चूणि संस्कृतमिश्रित गद्य में।
उपलब्ध नियुक्तियाँ भद्रबाहु ( द्वितीय ) की रचनाएं हैं। इसका समय विक्रम की छठी शती है। इन्होंने यथानिर्दिष्ट दस आगमों पर नियुक्तियाँ लिखी हैं : १. आवश्यक, २. दशवैकालिक, ३. उत्तराध्ययन, ४. आचारांग, ५.सूत्रकृताग, ६.दशाश्रुतस्कन्ध, ७. बृहत्कल्प, ८. व्यवहार, ६. सूर्यप्रज्ञप्ति और १०. ऋषिभाषित। सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित की नियुक्तियाँ उपलब्ध नहीं हैं। गोविन्दाचार्यरचित एक अन्य नियुक्ति ( गोविन्दनियुक्ति) भी अनुपलब्ध है । संसक्तनियुक्ति बहुत बाद की एक रचना है। जैसा कि पहले बताया जा चुका है, ओधनियुक्ति आवश्यकनियुक्ति में से तथा पिण्डनियुक्ति दशवैकालिकनियुक्ति में से अलग किये गये अंश हैं जिनकी गिनती मूलसूत्रों में की जाती है । नियुक्ति की व्याख्यान-शैली बहुत प्राचीन है।
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