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________________ अकलंकदेव की दार्शनिक कृतियाँ आचार्य अकलंक जैन प्रमाणशास्त्र के प्रमुख प्रस्थापक हैं । जैन परम्परा में प्रमाणशास्त्र का स्वतन्त्र रूप से सुव्यवस्थित निरूपण अकलंक की प्रमुख देन है । दिङ्नाग के समय से लेकर अकलंक के समय तक भारतीय दर्शनों में प्रमाणशास्त्रविषयक जो संघर्ष चलता रहा उसे दृष्टि में रखते हुए जैन प्रमाणशास्त्र का तदनुरूप प्रतिपादन करने का सर्वाधिक श्रेय अकलंक को है । इनके द्वारा रचित सभी ग्रन्थ जैन दर्शन और जैन न्यायविषयक हैं । ये विक्रम की सातवींआठवीं शती में होने वाले दक्षिण भारत के जैन दार्शनिक हैं । अकलंकदेव की कृतियाँ दो वर्गों में विभक्त हैं : स्वतन्त्र ग्रन्थ और टीकाग्रन्थ । लधीयस्त्रय, न्यायविनिश्चय, सिद्धिविनिश्चय और प्रमाणसंग्रह स्वतन्त्र ग्रन्थ हैं तथा तत्त्वार्थराजवार्तिक और अष्टशती टीका-ग्रन्थ हैं । लघीयत्रय आदि चारों मूलग्रन्थों पर स्वोपज्ञवृत्ति भी है । लघीयत्रय - यह तीन छोटे-छोटे प्रकरणों का संगह-ग्रन्थ है । प्रथम प्रकरण का नाम प्रमाणप्रवेश, द्वितीय का नयप्रवेश तथा तृतीय का प्रवचनप्रवेश है । प्रमाणप्रवेश में चार परिच्छेद हैं : प्रत्यक्ष, प्रमेय, परोक्ष और आगम । लघीयस्त्रय में कुल ७८ कारिकाएँ हैं । न्यायविनिश्चय - इस ग्रन्थ में तीन प्रस्ताव हैं : प्रत्यक्ष, अनुमान और प्रवचन । तीनों प्रस्तावों में कुल ४८० कारिकाएँ हैं। प्रत्यक्ष प्रस्ताव में इन्द्रियप्रत्यक्ष का लक्षण, चक्षुरादि बुद्धियों का व्यवसायालकत्व, ज्ञान के परोक्षवाद का खण्डन, ज्ञान के स्वसंवेदन की सिद्धि, साकारज्ञाननिरास, निराकारज्ञानसिद्धि आदि विषयों का समावेश है । अनुमान प्रस्ताव में अनुमान का लक्षण, अनुमान की बहिरर्थविषयता, साध्य एवं साध्याभास के लक्षण, शब्द का अर्थवाचकत्व, साधन एवं साधनाभास के लक्षण, प्रमेयत्व हेतु की अनेकान्तसाधकता, तर्क की प्रमाणता, वाद का लक्षण आदि विषय प्रतिपादित हैं । प्रवचन प्रस्ताव में प्रक्चन का स्वरूप, आगम के अपौरुषेयत्व का निराकरण, सर्वज्ञत्व का समर्थन, शब्द नित्यत्वनिरास, जीवादितत्वनिरूपण, मोक्ष का स्वरूप, सप्तभंगीनिरूपण आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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