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________________ ५६० जैन धर्म-दर्शन आध्यात्मिक वीरता-निर्भीकता है जबकि आत्महत्या निराशामय कायरता-भीरता है। द्वादश व्रतों की ही भाँति संलेखना के भी मुख्य पाँच अतिचार बताये गये हैं जो इस प्रकार हैं : १. इहलोकाशंसाप्रयोग, २. परलोकाशंसाप्रयोग, ३. जीविताशंसाप्रयोग, ४. मरणाशंमाप्रयोग, ५. कामभोगाशंसाप्रयोग । इहलोक अर्थात् मनुष्यलोक, आशंसा अर्थात् अभिलाषा, प्रयोग अर्थात् प्रवृत्ति । इहलोकाशंसाप्रयोग अर्थात् मनुष्यलोकविषयक अभिलाषारूप प्रवृत्ति । संलेखना के समय इस प्रकार की इच्छा करना कि आगामी भव में इसी लोक में धन, कीर्ति, प्रतिष्ठा आदि प्राप्त हो-इहलोकाशंसाप्रयोग अतिचार है । इसी प्रकार परलोक में देव आदि बनने की इच्छा करना परलोकाशंसाप्रयोग अतिचार है। अपनी प्रशंसा, पूजा-सत्कार आदि होता देखकर अधिक काल तक जीवित रहने की इच्छा करना जीविताशंसाप्रयोग अतिचार है । सत्कार आदि न होता देख कर अथवा कष्ट आदि से घबराकर शीघ्र मृत्यु प्राप्त करने की इच्छा करना मरणाशंसाप्रयोग अतिचार है। आगामी जन्म में मनुष्यसम्बन्धी अथवा देवसम्बन्धी कामभोग प्राप्त करने की इच्छा कामभोगाशंसाप्रयोग अतिचार है। मारणान्तिकी संलेखना की आराधना करनेवाले को इन व इस प्रकार के अन्य अतिचारों से बचना चाहिए। प्रतिमाएँ: प्रतिमा का अर्थ है प्रतिज्ञाविशेष, नियमविशेष, व्रतविशेष, तपविशेष अथवा अभिग्रहविशेष । श्रावक के लिए ग्यारह प्रतिमाओं का विधान किया गया हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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