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जैन धर्म-दर्शन.
सिद्ध करते हैं । जीवाजीवाभिगम में भगवान् महावीर और गणधर गौतम के प्रश्नोत्तर के रूप में जीव और अजीव के भेदप्रभेद का विस्तृत वर्णन है। इसमें नौ प्रतिपत्तियाँ ( प्रकरण ) हैं। तीसरी प्रतिपत्ति सबसे बड़ी है जिसमें देवों तथा द्वीपसमुद्रों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है । प्रज्ञापना में प्रज्ञापना, स्थान, अल्पबहुत्व, स्थिति, विशेष, व्युत्क्रान्ति आदि छत्तीस पदों का प्रतिपादन है । जैसे अंगों में भगवती सूत्र सबसे विस्तृत है वैसे ही उपांगों में प्रज्ञापना सबसे बड़ा है । इस उपांग के रचयिता वाचकवंशीय श्यामाचार्य हैं जो वीरनिर्वाण संवत् ३७६ में विद्यमान थे । सूर्यप्रज्ञप्ति में सूर्य, चन्द्र और नक्षत्रों की गति आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है । इसमें बीस प्राभूत ( प्रकरण ) हैं । उपलब्ध चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्य प्रज्ञप्ति का विषय बिलकुल एकसमान है । नामों से प्रतीत होता है कि चन्द्रप्रज्ञप्ति में चन्द्र के परिभ्रमण का वर्णन रहा होगा तथा सूर्य प्रज्ञप्ति में सूर्य के परिभ्रमण का । आगे जाकर दोनों मिलकर एक हो गये होंगे । जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सात वक्षस्कारों में विभक्त है। तीसरे वक्षस्कार में जम्बूद्वीपान्तर्गत भारतवर्ष एवं उसके राजा ( चक्रवर्ती) भरत की विजययात्रा का वर्णन है । निरयावलिका में राजा श्रेणिक के काल, सुकाल, महाकाल आदि पुत्रों से सम्बद्ध दस अध्ययन हैं । ये राजकुमार अपने ज्येष्ठ भ्राता कूणिक के पक्ष में अपने नाना चेटक से युद्ध करते हुए मरकर नरक में गये । कल्पावतंसिका में श्रेणिक के पद्म, महापद्म, भद्र, सुभद्र आदि पौत्रों से सम्बद्धं दस अध्ययन हैं । पुष्पिका में चन्द्र, सूर्य, शुक्र आदि देवों से सम्बद्ध दस अध्ययन हैं । पुष्पचूलिका में भी दस अध्ययन हैं जिनमें श्री, ह्री, धृति आदि देवियों का वर्णन है। वृष्णिदशा में वृष्णिवंश
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के निसढ आदि राजकुमारों से सम्बद्ध बारह अध्ययन हैं । ये
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