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वाहनसम्बन्धी व्यापार -- जैसे गाड़ी बनाना आदि । भाटककर्म अर्थात् वाहन किराये पर देना आदि । स्फोटककर्म अर्थात् भूमि फोड़ने का व्यापार - जैसे खानें खुदवाना आदि । दंतवाणिज्य अर्थात् हाथीदांत आदि का व्यापार । लाक्षावाणिज्य अर्थात् लाख आदि का व्यापार । रसवाणिज्य अर्थात् मदिरा आदि का व्यापार । केशवाणिज्य अर्थात् बालों व बालवाले प्राणियों का व्यापार । विषवाणिज्य अर्थात् जहरीली वस्तुओं तथा हिंसक अस्त्र-शस्त्रों का व्यापार । यन्त्र- पीडन कर्म अर्थात् मशीन चलाने आदि का धन्धा । निलछिनकर्म अर्थात् प्राणियों के अवयवों को छेदने, काटने आदि का व्यवसाय । दावाग्नि-दानकर्म अर्थात् जंगल, खेत आदि में आग लगाने का कार्य । सरोहृदतडागशोषणताकर्म अर्थात् सरोवर, झील, तालाब आदि को सुखाने का कार्य । असतीजनपोषणताकर्म अर्थात् कुलटा स्त्रियों के पोषण, हिंसक प्राणियों के पालन, समाजविरोधी तत्त्वों के संरक्षण आदि का कार्य । श्रावक के लिए इन सब प्रकार के व्यवसायों व इनसे मिलते-जुलते अन्य प्रकार के कार्यों का निषेध इसलिए किया गया है कि इनके गर्भ में महती हिंसा रही हुई है । प्रकार के हिंसापूर्ण कृत्यों से करुणासम्पन्न श्रावक अपनी आजीविका कैसे चला सकता है ? उपर्युक्त १५ कर्मादानों में से कुछ कर्म ऐसे भी हैं जिन्हें यदि विवेकपूर्वक एवं विशिष्ट साधनों की सहायता से किया जाय तो स्थूल हिंसा का उपार्जन नहीं होता । व्यवसाय कोई भी हो, यदि उसमें दो बातें दृष्टिगोचर हों तो वह श्रावक के लिए आचरणीय है । पहली बात यह है कि उसमें स्थूल हिंसा अर्थात् स जीवों की हिंसा न होती हो अथवा कम-सेकम होती हो । दूसरी बात यह है कि उसके द्वारा किसी व्यक्ति, वर्ग अथवा समाज का शोषण न होता हो अथवा कम-से-कम
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आचारशास्त्र
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