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________________ ५४६ येन धर्म-दर्शन उल्लंघन करने पर जो दोष लगता है उसे अधोदिशा- परिमाणअतिक्रमण कहते हैं। ऊंची व नीची दिशाओं के अतिरिक्त पूर्वादि समस्त दिशाओं के परिमाण का उल्लंघन करना तिर्यग्दिशा - परिमाण अतिक्रमण है । एक दिशा के परिमाण का अमुक अंश दूसरी दिशा के परिमाण में मिला देना व इस प्रकार मनमाने ढंग से क्षेत्र की मर्यादा बढ़ा लेना क्षेत्रवृद्धि अतिचार है । सीमा का स्मरण न रहने पर लगने वाले दोष अर्थात् अतिचार का नाम स्मृत्यन्तर्धा है। मैंने सौ योजन की मर्यादा का व्रत ग्रहण किया है या पचास योजन की मर्यादा का ? इस प्रकार का सन्देह होने पर अथवा स्मरण न होने पर पचास योजन से आगे न जाना ही अनुमत है, चाहे वास्तव में मर्यादा सौ योजन की ही क्यों न हो । यदि अज्ञान अथवा विस्मृति से क्षेत्र के परिमाण का उल्लंघन हुआ हो तो वापिस लौट आना चाहिए, मालूम होने पर आगे नहीं जाना चाहिए, न किसी को भेजना ही चाहिए। वैसे ही कोई गया हो तो उसके द्वारा प्राप्त वस्तु का उपयोग भी नहीं करना चाहिए। विस्मृति के कारण खुद गया हो व कोई वस्तु प्राप्त हुई हो तो उसका भी त्याग कर देना चाहिए । २. उपभोगपरिभोग- परिमाण - जो वस्तु एक बार उपयोग में आती है उसे उपभोग कहते हैं। बार-बार काम में आने वाली वस्तु को परिभोग कहा जाता है । उपभोग एवं परिभोग की मर्यादा निश्चित करना उपभोगपरिभोग-परिमाण व्रत है । इस व्रत से अहिंसा एवं संतोष की रक्षा होती है। इससे जीवनमें सरलता एवं सादगी आती है तथा व्यक्ति को महारम्भ, महा परिग्रह तथा महातृष्णा से मुक्ति मिलती है । शास्त्रकारों ने उपभोगपरिभोगसम्बन्धी २६ प्रकार की वस्तुओं की गिनती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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