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आचारशास्त्र
५४३ कारण अथवा भूल से मैथुन सेवन का प्रसंग उपस्थित होना अपरिगृहीता-गमन अतिचार है। जिस किसी स्त्री के साथ कामोतेजक क्रीड़ा करना, जिस किसी स्त्री का कामोत्तेजक आलिंगन करना, हस्तकर्म आदि कुचेष्टाएं करना, कृत्रिम साधनों द्वारा कामाचार का सेवन करना आदि कामवर्धक प्रवृत्तियाँ अनंगक्रीड़ा के अन्तर्गत आती हैं । (कन्यादान में पुण्य समझकर अथवा रागादि के कारण दूसरों के लिए लड़के-लड़कियाँ ढूंढना, उनकी शादियां करना आदि कर्म परविवाहकरण अतिचार के अन्तर्गत हैं। कर्तव्यबुद्धि अथवा सहायताबुद्धि से वैसा करने में कोई दोष नहीं। स्वसन्तति के विवाह आदि का दायित्व तो स्वदारसंतोष से सम्बद्ध होने के कारण श्रावक पर स्वतः आ जाता है । अतएव अपने पुत्र-पुत्रियों की शादी आदि का समुचित प्रबन्ध करना श्रावक के चतुर्थ अणुव्रत स्वदार-सन्तोष की मर्यादा के ही अन्तर्गत है। पाँच इन्द्रियों में से चक्षु और श्रोत्र के विषय रूप और शब्द को काम कहते हैं क्योंकि इनसे कामना तो होती है किन्तु भोग नहीं होता। घ्राण, रसना व स्पर्शन के विषय गंध, रस व स्पर्श भोगरूप हैं क्योंकि ये तीनों इन्द्रियाँ अपने अपने विषय के भोग से ही तृप्त होती हैं। इन कामरूप एवं भोगरूप विषयों में अत्यन्त आसक्ति रखना अर्थात् इनकी अत्यधिक आकांक्षा करना कामभोग-तीव्राभिलापा अतिचार कहलाता है। बाजीकरण आदि के सेवन द्वारा अथवा कामशास्त्रोक्त प्रयोगों द्वारा मैथुनेच्छा को अधिकाधिक उद्दीप्त करना भी कामभोग-तीवाभिलाषारूप अतिचार है। अपनी पत्नी के साथ अमर्यादित ढग से मैथुन का सेवन करना भी कामभोग-तीव्राभिलाषा अतिचार ही कहलाता है क्योंकि इससे सन्तोषगुण का घात होता है तथा मन में सदा कामोत्तेजना
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