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आचारशास्त्र
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एक देश से दूसरे देश में लाना-लेजाना, राज्यहित के विरुद्ध गुप्त कार्य करना, स्वार्थवश राज्य के किसी भी कानून का भंग करना, समाज के किसी भी हितकर नियम की अवहेलना करना आदि । लेन-देन में न्यूनाधिकता का प्रयोग करना कूटतोलकूटमान कहलाता है। वस्तुओं में मिलावट करना तत्प्रतिरूपक व्यवहार है । बहुमूल्य वस्तु में अल्पमूल्य वस्तु मिलाना, शुद्ध वस्तु में अशुद्ध वस्तु मिलाना, सुपथ्य वस्तु में कुपथ्य वस्तु मिलाना और इस प्रकार अनुचित लाभ उठाना श्रावक के लिए वजित है।
४ स्वदार-सन्तोष-अपनी भार्या के सिवाय शेष समस्त स्त्रियों के साथ मैथुनसेवन का मन, वचन व कायापूर्वक त्याग करना स्वदार-सन्तोष व्रत कहलाता है। जिस प्रकार श्रावक के लिए स्वदार-सन्तोष का विधान है उसी प्रकार श्राविका के लिए स्वपति-सन्तोष का नियम समझना चाहिए। अपने भर्ता के अतिरिक्त अन्य समस्त पुरुषों के साथ मन, वचन और कायापूर्वक मथुनसेवन का त्याग करना स्वाति-सन्तोष कहलाता है। श्रावक के लिए स्वदार-सन्तोष एवं श्राविका के लिए स्वपति-सन्तोष अनिवार्य है। श्रमण-श्रमणी के लिए मैथुन का सर्वथा त्याग विहित है जबकि श्रावक-श्राविका के लिए मैथुन की मर्यादा निश्चित की गई है। स्थूल प्राणातिपात-विरमण आदि की समकक्ष भाषा में इसे स्थूल मैथुन-विरमण कह सकते हैं।
जब श्रावक मैथुनसेवन की स्वदारसंतोषरूप मर्यादा निश्चित करता है तो उसमें परदारत्याग, वेश्यात्याग, कुमारिकात्याग आदि स्वतः आ जाते हैं। ऐसा होते हुए भी कई बार विषय
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