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________________ १३. पेन धर्म-दर्शन धारी भिक्षु अधिक वर्षा में आहार- पानी के लिए बाहर नहीं जा सकता । अल्प वर्षा होती हो तो एक वस्त्र और ओढ़कर आहार पानी के लिए गृहस्थ के घर की ओर जा सकता है । भिक्षा के लिए बाहर गया हुआ मुनि वर्षा आ जाने की स्थिति में वृक्ष आदि के नीचे ठहर सकता है एवं आवश्यकता होने पर वहाँ आहार- पानी का उपभोग भी कर सकता है । उसे खापीकर पात्रादि साफ कर सूर्य रहते हुए अपने उपाश्रय में चले जाना चाहिए क्योंकि वहाँ रहकर रात्रि व्यतीत करना अकल्प्य है । मुनि को अपने शरीर से पानी टपकने की स्थिति में अथवा अपना शरीर गीला होने की अवस्था में आहार- पानी का उपभोग नहीं करना चाहिए । जब उसे यह मालूम हो कि अब मेरा शरीर सूख गया है तब आहार पानी का उपभोग करना चाहिए। पर्युषणा के बाद अर्थात् वर्षाऋतु के पचास दिन व्यतीत होने पर निर्ग्रन्य-निर्ग्रन्थी के सिर पर गोलोमप्रमाण अर्थात् गाय के बाल जितने केश भी नहीं रहने चाहिए। कैंची से अपना मुण्डन करने वाले को आधे महीने से मुंड होना चाहिए, उस्तरे से अपना मुण्डन करने वाले को एक महीने से तथा लोंच से मुंड होने वाले को अर्थात् हाथों से बाल उखाड़कर अपना मुण्डन करने वाले को छः महीने से मुण्ड होना चाहिए। स्थविर (वृद्ध) वार्षिक लोंच कर सकता है । श्रमण श्रमणियों को पर्युषणा के बाद अधिकरणयुक्त अर्थात् क्लेशकारी वाणी बोलना अकल्प्य है । पर्युषणा के दिन उन्हें परस्पर क्षमायाचना करनी चाहिए एवं उपशमभाव की वृद्धि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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