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________________ ५२० चतुर्थ भाग में वस्त्र पात्रादि का प्रतिलेखन ( निरीक्षण) करने के बाद गुरु को नमस्कार करसर्व दुःखमुक्ति के लिए स्वाध्याय करना चाहिए । इसी प्रकार दिवस के अन्तिम प्रहर के अन्त के चतुर्थ भाग में स्वाध्याय से निवृत्त होकर गुरु को वंदन करने के बाद वस्त्र पात्रादि का प्रतिलेखन करना चाहिए । प्रतिलेखन करते समय परस्पर वार्तालाप नहीं करना चाहिए और न किसी अन्य से ही किसी प्रकार की बातचीत करनी चाहिए अपितु अपने कार्य में पूर्ण सावधानी रखनी चाहिए। तृतीय प्रहर में क्षुधा वेदना की शान्ति आदि के लिए आहारपानी की गवेषणा करनी चाहिए। आहार- पानी लेने जाते समय भिक्षु को पात्र आदि का अच्छी तरह प्रमार्जन कर लेना चाहिए । भिक्षा के लिए अधिक-से-अधिक आधा योजन (दो कोस ) तक जाना चाहिए । चतुर्थ प्रहर के अन्त में स्वाध्याय से निवृत्त होने पर एवं वस्त्र पात्रादि की प्रतिलेखना कर लेने पर मल-मूत्र का त्याग करने की भूमि का अवलोकन करने के बाद कायोत्सर्ग करना चाहिए। कायोत्सर्ग में दिवससम्बन्धी अतिचारों-- दोषों की चिन्तना एवं आलोचना करनी चाहिए । तदनन्तर रात्रिकालीन स्वाध्याय आदि में लग जाना चाहिए । रात्रि के चतुर्थ प्रहर में इस ढंग से स्वाध्याय करना चाहिए कि अपनी आवाज से गृहस्थ जग न जायें । चतुर्थ प्रहर का चतुर्थ भाग शेष रहने पर पुनः कायोत्सर्ग करना चाहिए एवं रात्रिसम्बन्धी अतिचारों की चिन्तना व आलोचना करनी चाहिए । आचारशास्त्र कल्पसूत्र के सामाचारी नामक अंतिम उल्लेख है कि श्रमण भगवान् महावीर ने वर्षा रातसहित एक महीना बीतने पर अर्थात् आषाढ़ Jain Education International For Private & Personal Use Only . प्रकरण में यह ऋतु का बीस मास के अन्त www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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