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माचारशास्त्र
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प्रतिक्रमण, ५. प्रत्याख्यान, ६ कायोत्सर्ग। श्वेताम्बर-परंपराभिमत षडावश्यक-क्रम यों है : १. सामायिक, २. चतुर्विशतिस्तव, ३. वन्दना, ४. प्रतिक्रमण, ५. कायोत्सर्ग, ६. प्रत्याख्यान ।
जो अवश्य करने योग्य होता है उसे आवश्यक कहते हैं। सामायिक आदि मुनि की प्रतिदिन करने योग्य क्रियाएं हैं अतः इन्हें आवश्यक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, सामायिकादि षडावश्यक निर्ग्रन्थ के नित्यकर्म हैं। इन्हें श्रमण को प्रतिदिन दोनों समय अर्थात् दिन व रात्रि के अन्त में अवश्य करना होता है।
सम की आय करना अर्थात् त्रस और स्थावर सभी प्राणियों पर समभाव रखना सामायिक है। जिसकी आत्मा संयम, नियम व ता में संलीन होती है अर्थात जो आत्मा को मन, वचन व काय की पापपूर्ण प्रवृत्तियों से हटाकर निरवद्य व्यापार में प्रवृत करता है उसे सामायिक की प्राप्ति होती है। सामायिक में बाह्य दृष्टि का त्यागकर अन्तर्दृष्टि अपनाई जाती है-बहिमुंखी प्रवृत्ति त्यागकर अन्तमुखी प्रवृत्ति स्वीकार की जाती है । सामायिक समस्त आध्यात्मिक साधनाओं की आधारशिला है । जब साधक सर्व सावध योग से विरत होता है, छः कायों के जीवों के प्रति संयत होता है, मन-वचन-काय को नियन्त्रित करता है, आत्मस्वरूप में उपयुक्त होता है, यतनापूर्वक आचरण करता है तब वह सामायिकयुक्त होता है।।
समभावरूप सामायिक के महान् साधक एवं उपदेशक चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति करना चतुविंशतिस्तव कहलाता है । त्याग, वैराग्य, संयम व साधना के महान् आदर्श एवं सामायिक
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