SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 522
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमणाचारः आचारशास्त्र अपरिग्रहवृत्ति अहिंसामूलक आचार के सम्यक् परिपालन के लिए अनिवार्य है । Jain Education International ५०७ श्रमण, भिक्षु, मुनि, निर्ग्रन्थ, अनगार, संयत, विरत आदि शब्द एकार्थक हैं | श्रमण के व्रत महाव्रत अर्थात् बड़े व्रत कहलाते हैं क्योंकि वह हिंसादि का पूर्णतः त्यागी होता है । श्रावक, उपासक, देशविरत, सागार, श्राद्ध, देशसंयत आदि शब्द एक ही अर्थ के द्योतक हैं । श्रावक के व्रत अणुव्रत अर्थात् छोटे व्रत कहलाते हैं क्योंकि वह हिंसादि का अंशतः त्याग करता है । सर्वविरति अर्थात् सर्वत्यागरूप महाव्रत पाँच हैं : १. सर्वप्राणातिपात विरमण, २. सर्वमृषावाद - विरमण, ३. सर्व अदत्तादान - विरमण, ४. सर्व मैथुन - विरमण, ५. सर्वपरिग्रह - विरमण । प्राणातिपात अर्थात् हिंसा का सर्वतः विरमण यानी पूर्णतः त्याग अथवा सर्व प्राणातिपात अर्थात् सम्पूर्ण हिंसा का विरमण यानी त्याग सर्वप्राणातिपात विरमण कहलाता है । इसी प्रकार मृषावाद अर्थात् झूट, अदत्तादान अर्थात् चोरी, मैथुन अर्थात् कामभोग और परिग्रह अर्थात् संग्रह अथवा आसक्ति का पूर्णतः त्याग क्रमश: सर्वमृषावाद - विरमण, सर्वअदत्तादान- विरमण, सर्वमैथुन-विरमण और सर्वपरिग्रह-विरमण कहलाता है । इस प्रकार के त्याग को नवकोटि प्रत्याख्यान कहा जाता है क्योंकि इसमें हिंसा आदि के करना, कराना और अनुमोदन करना रूप तीन करणों का मन, वचन और कायरूप तीन योगों से प्रतिषेध किया जाता है अर्थात् हिंसा आदि का मन से करना, कराना एवं अनुमोदन करना, वचन से करना, कराना एवं अनुमोदन करना तथा काय से करना, कराना एवं अनुमोदन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy