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________________ कमगिद्धान्त उदय के लिए अन्य परंपराओं में प्रारब्ध शब्द का प्रयोग किया गया है। इसी प्रकार सत्ता के लिए संचित, बन्धन के लिए आगामी अथवा क्रियमाण, निकाचन के लिए नियतविपाकी, संक्रमण के लिए आवागमन, उपशमन के लिए तनु आदि शब्दों के प्रयोग उपलब्ध होते हैं।' कर्म और पुनर्जन्म : कर्म और पुनर्जन्म का अविच्छेद्य सम्बन्ध है। कर्म की सत्ता स्वीकार करने पर उसके फलरूप परलोक अथवा पुनर्जन्म की सत्ता भी स्वीकार करनी ही पड़ती है। जिन कर्मों का फल इस जन्म में प्राप्त नहीं होता उन कर्मों के भोग के लिए पुनर्जन्म मानना अनिवार्य है । पुनर्जन्म एवं पूर्वभव न मानने पर कृत कर्म का निर्हेतुक विनाश-कृतप्रणाश एवं अकृत कर्म का भोग-अकृतकर्मभोग मानना पड़ेगा। ऐसी अवस्था में कर्म-व्यवस्था दूषित हो जाएगी। इन्हीं दोषों से बचने के लिए कर्मवादियों को पुनर्जन्म की सत्ता स्वीकार करनी पड़ती है। इसीलिए वैदिक, बौद्ध एवं जैन तीनों प्रकार की भारतीय परम्पराओं में कर्ममूलक पुनर्जन्म की सत्ता स्वीकार की गयी है। जैन कर्मसाहित्य में समस्त संसारी जीवों का समावेश चार गतियों में किया गया है : मनुष्य, तिर्यञ्च, नरक और देव । १. देखिए-योगदर्शन तथा योगविशिका (प० सुखलालजी द्वारा सम्पा दित), प्रस्तावना, पृ० ५४; Outlines of Indian Philoso- phy (P. T. Srinivasa Iyengar),पृ. ६२. २. इन परम्पराओं को पुनर्जन्म एवं परलोक-विषयक मान्यताओं के लिए देखिए-आत्ममीमांसा, पृ० १३४-१५२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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