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जैन धर्म-दर्शन का साहित्य
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जमानि आदि अनेक महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है । अन्य अंगग्रन्थों की अपेक्षा अधिक विशालकाय एवं विपुल सामग्रीयुक्त होने के कारण विशेष पूज्यभावना की अभिव्यक्ति करनेवाला इसका भगवती नाम अधिक प्रसिद्ध है ।'
ज्ञाताधर्मकथा के प्रथम श्रुतस्कन्ध में ज्ञातरूप अर्थात् उदाहरण-रूप उन्नीस अध्ययन हैं तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध में धर्मकथाओं के दस वर्ग हैं। इन वर्गों में चमर, बलि, चन्द्र, सूर्य, शकेन्द्र, ईशानेन्द्र आदि की पटरानियों के पूर्वभव की कथाएं हैं।
१. व्याख्याप्रज्ञप्ति प्रपरनाम भगवतीसूत्र का पन्द्रहवां शतक गोशाल और महावीर के सम्बन्धों पर कुछ प्रकाश डालता है। इस शतक को अक्षरश: पढ़ने पर ऐसा विचार उत्पन्न होता है कि यह प्रकरण इस रूप में थागम में शोभां नहीं देता । मुझे तो इसमें भी सन्देह है कि यह शतक भगवान् महावीर की वीतराग वाणी से सम्बद्ध है। इसमें जिस अशोभनीय ढंग से महावीर व गोशाल के पारस्परिक कलह का वर्णन किया गया है तथा जिस प्रकार की असंयत भाषा का प्रयोग हुआ है वैसा धन्य किसी भी भागम-ग्रन्थ में दृष्टिगोचर नहीं होता। इस शतक में एक सबसे बड़ा दोष यह है कि शतककार ने भगवान् महावीर जैसी महान विभूति पर चिकित्सा के नाम पर मांसाहार का कलंक लगाया है। इस प्रकार का महावीर - चरित मन्य किसी भी भागम में वर्णित नहीं है। मांसाहारपरक शब्दों का शाकाहारपरक मर्थ करके इस दोष को दूर करने का प्रयत्न किया जाता है किन्तु इससे चिन्तक को सन्तोषप्रद समाधान प्राप्त नहीं होता। जिन प्रमुक शब्दों का प्रयोग इस शतक में किया गया है जिनका कि शाकाहारपरक अर्थ किया जाता है उन शब्दों का प्रयोग भाग
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