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जैन धर्म-दर्शन कर्म मूर्त है, क्योंकि उसमें बाह्य पदार्थों से बलाधान होता है, जैसे घट । जिस प्रकार घटादि मूर्त वस्तुओं पर तेल आदि बाह्य पदार्थों का विलेपन करने से बलाधान होता है अर्थात् स्निग्धता आदि की उत्पत्ति होती है उसी प्रकार कर्म में भी माला, चन्दन, वनिता आदि बाह्य पदार्थों के संसर्ग से बलाधान होता है अर्थात् उद्दीपनादि की उत्पत्ति होती है। अतः कर्म मूर्त है। कर्म, आत्मा और शरीर : ___कर्म मूर्त है तथा आत्मा अमूर्त । ऐसी स्थिति में कर्म आत्मा से सम्बद्ध कैसे हो सकता है ? मूर्त द्वारा अमूर्त का उपधात या उपकार कैसे हो सकता है ? जैसे विज्ञानादि अमूर्त हैं किन्तु मदिरा, विष आदि मूर्त वस्तुओं द्वारा उनका उपघात होता है तथा घी, दूध आदि पौष्टिक पदार्थो से उनका उपकार होता है वैसे ही मूर्त कर्म द्वारा अमूर्त आत्मा का उपघात या उपकार होता है ।' अथवा संसारी आत्मा एकान्ततः अमूर्त नहीं है । जीव और कर्म का अनादिकालीन सम्बन्ध होने के कारण कथंचित् जीव भी कर्मपरिणामरूप है अतः वह उस रूप में मूर्त भी है। इस प्रकार मूर्त आत्मा से मूर्त कर्म सम्बद्ध हो सकता है तथा कर्म आत्मा का उपघात एवं उपकार कर सकता है।
जिस प्रकार आत्मा और कर्म का सम्बन्ध अनादि है उसी प्रकार शरीर और कर्म का सम्बन्ध भी अनादि है । शरीर और कर्म में परस्पर कार्य-कारणभाव है । जैसे बीज से अंकुर तथा १. वही, १६३७. २. वही, १६३८.
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