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सापेक्षवाद
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की दृष्टि से मैं अक्षय हूँ, अव्यय हूं, अवस्थित हूँ। बदलते रहने वाले उपयोग की दृष्टि से मैं अनेक हूं।" ___इसी प्रकार अजीव द्रव्य की एकता और अनेकता का स्पष्टीकरण करते हुए उन्होंने कहा-'गौतम ! धर्मास्तिकाय द्रव्य दृष्टि से एक है, इसलिए वह सर्वस्तोक है। वही धर्मास्तिकाय प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुण भी है।'२ इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय, आकाश आदि द्रव्यदृष्टि से एक और प्रदेशदृष्टि से अनेक हैं। परस्पर विरोधी माने जाने वाले धर्मों का एक ही द्रव्य में अविरोधी समन्वय करना अनेकान्तवाद की देन है। अस्ति और नास्ति :
बुद्ध ने 'अस्ति' और 'नास्ति' दोनों को मानने से इनकार किया। सब है, ऐसा कहना एक अन्त है । सब नहीं है, ऐसा कहना दूसरा अन्त है। इन दोनों अन्तों को छोड़कर तथागत मध्यम मार्ग का उपदेश देते हैं। महावीर ने 'सर्वमस्ति' और १. सोमिला ! दम्वट्ठयाए एगे अहं, नाणदंसणठ्ठयाए दुविहे अहं, पएसठ्ठयाए अक्खए वि अहं, अव्वए वि अहं, अट्ठिए वि अहं, उवओगट्ठयाए अणेग यभाव भविए वि अहं । -वही,१.८.१.. २. गोयमा ! सम्वत्थोवे एगे धम्मस्थिकाए दवट्ठयाए, से चेव पएस
याए असंखेज्जगुणे..। सम्वत्थोवे पोग्गलत्यिकाए दवट्ठयाए, से चेव पएसट्ठयाए असंखेज्जगुणे। -प्रज्ञापना, ३.५६. ३. सव्वं अत्थीति खो ब्राह्मण अय एको अन्ते ।... सव्वं नत्थीति खो
ब्राह्मण अयं दुतियो अन्तो। एते ते ब्राह्मण उभो अन्ते अनुपगम्म मज्झेन तथागतो धम्म देसे तिअवजापंचया सखारा......!
--संयुत्तनिकाय, १२.४७,
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