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सापेक्षवाद
३४१ दृष्टि से ऐसा हो भी सकता है, दूसरी दृष्टि से सोचने पर ऐसा नहीं भी हो सकता। हो सकता है वह कैसे, और नहीं हो सकता है वह कैसे ? प्रश्नोत्तर की यह शैली विचारों को सुलझानेवाली शैली है । इस शैली से किसी वस्तु के अनेक पहलुओं का ठीकठीक पता लग जाता है। उसका विश्लेषण एकांगी, एकांशी या एकान्त नहीं होने पाता । बुद्ध ने इस दृष्टि को विभज्यवाद का नाम दिया । इससे विपरीत दृष्टि को एकांशवाद कहा। महावीर ने इसी दृष्टि को अनेकान्तवाद और स्याद्वाद कहा। इससे विपरीत दृष्टि को एकान्तवाद का नाम दिया। बुद्ध और बुद्ध के अनुयायियों ने इस दृष्टि का पूरा पीछा नहीं किया। महावीर और उनके अनुयायियों ने इस दृष्टि को अपनी विचार-सम्पत्ति समझकर उसकी पूरी रक्षा की तथा दिन-प्रतिदिन उसे खूब बढ़ाया।) . एकान्तवाद और अनेकान्तवाद : (9) एकान्तबाद किसी एक दृष्टि का ही समर्थन करता है। यह कभी सामान्य या विशेष के रूप में मिलता है तो कभी सत् या असत् के रूप में । कभी निर्वचनीय या अनिर्वचनीय के रूप में दिखाई देता है तो कभी हेतु या अहेतु के रूप में । जो लोग सामान्य का ही समर्थन करते हैं वे अभेदवाद को ही जगत् का मौलिक तत्व मानते हैं और भेद को मिथ्या कहते हैं । उसके विरोधी रूप भेदवाद का समर्थन करने वाले इससे विपरीत सत्य का प्रतिपादन करते हैं। वे अभेद को सर्वथा मिथ्या समझते हैं और भेद को ही एकमात्र प्रमाण मानते हैं । सद्वाद का एकान्तरूप से समर्थन करने वाले किसी भी कार्य की उत्पत्ति या विनाश को वास्तविक नहीं मानते । वे कारण और कार्य में भद का दर्शन नहीं करते। दूसरी ओर असद्वाद के समर्थक
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