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सापेक्षवाद
भगवान् महावीर को केवलज्ञान होने के पूर्व कुछ स्वप्न आये थे, ऐसा भगवतीसूत्र में उल्लेख है। उन स्वप्नों में से एक स्वप्न इस प्रकार है-चित्र-विचित्र पंखों वाले एक बड़े पुस्कोकिल को स्वप्न में देखकर वे प्रतिबुद्ध हुए।' इस स्वप्न का क्या फल है, इसका विवेचन करते हुए कहा गया है कि श्रमण भगवान् महावीर ने जो चित्र-विचित्र पुस्कोकिल स्वप्न में देखा है उसका फल यह है कि वे स्वपरसिद्धान्त का प्रतिपादन करने वाले विचित्र द्वादशांग गणिपिटक का उपदेश देंगे। इस वर्णन को पढ़ने से यह मालूम होता है कि शास्त्रकार ने कितने सुन्दर ढंग से एक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। चित्रविचित्र पंखवाला पुस्कोकिल कौन है ? यह स्याद्वाद का प्रतीक है। जैन दर्शन के प्राणभूत सिद्धान्त स्याद्वाद का कैसा सुन्दर चित्रण है ! वह एक वर्ण के पंख वाला कोकिल नहीं है अपितु चित्रविचित्र पंख वाला कोकिल है। जहाँ एक ही तरह के पंख होते हैं वहाँ एकान्तवाद होता है, स्याद्वाद या अनेकान्तवाद नहीं। जहाँ विविध वर्ण के पंख होते हैं वहाँ १. एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुसकोइलगं सुविणे पासित्ता
णं पडिबुद्धे । -भगवतीसूत्र, १६.६. २. जपणं समणं भगवं महावीरे एगं महं चित्तविचित्तं जाव पडिबद्ध
तण्णं समणे भगवं महावीरे विचित्तं ससमयपरसमइयं दुवालसंग गणिपिडगं आघवेति पन्नवेति परूवेति । --वही.
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