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ज्ञानमीमांसा
३२७ होने पर ही विरोधी साधन का प्रयोग हो सकता है। अग्नि की छोटी-सी चिनगारी से ठण्डक के अभाव का अनुमान नहीं किया जा सकता । खूब अग्नि होने पर ही ठण्डक के अभाव का अनुमान करना सम्यक है।
परार्थानुमान-साधन और साध्य के अविनाभाव सम्बन्ध के कथन से उत्पन्न होने वाला ज्ञान परार्थानुमान है।' स्वार्थानुमान का विवेचन करते समय हमने देखा है कि वह व्यक्ति में दूसरे की सहायता के बिना ही उत्पन्न होता है। परार्थानुमान इससे विपरीत है । एक व्यक्ति ने स्वयं साधन और साध्य के अविनाभाव का ग्रहण किया है और दूसरा व्यक्ति ऐसा है जिसे इस सम्बन्ध का ज्ञान नहीं है । पहला व्यक्ति अपने ज्ञान का प्रयोग दूसरे व्यक्ति को समझाने के लिए करता है । उसके कथन से उत्पन्न होने वाला ज्ञान परार्थानुमान है । यह अनुमान उसके लिए नहीं है जो साधन और साध्य के सम्बन्ध से परिचित है अपितु उसके लिए है जिसे इस सम्बन्ध का ज्ञान नहीं है, अतः इसका नार परार्थानुमान है।
परार्थानुमान ज्ञानात्मक है किन्तु उपचार से उसे बताने वाले वचन को भी परार्थानुमान कहा गया है । ज्ञानात्मक परार्थानुमान की उत्पत्ति वचनात्मक परार्थानुमान पर निर्भर है, इसलिए उपचार से वचन को भी परार्थानुमान कहा जाता है। परार्थानुमान के लिए हेतु का वचनात्मक प्रयोग दो तरह से हो सकता है। साध्य के होने पर ही साधन का होना बताने वाला एक प्रकार है। साध्य के अभाव में साधन का न होना
१. यथोक्तसाधनाभिधानजः परार्थम् । -प्रमाणमीमांसा, २.१.१. २. पक्षहेतुवचनात्मकं परार्थमनुमानमुपचारात् ।
-प्रमाणनयतत्त्वालोक, ३ २३.
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