________________
१८
जैन धर्म-दर्शन से प्रार्थना की और उसे धमकाया भी ताकि वह साध्वी को छोड़ दे पर उसने एक न सुनी। तब उन्होंने सिन्धु के पश्चिम की ओर प्रस्थान किया और शकों को गर्दभिल्ल के विरोध में उभाड़ा। शकों ने उज्जैन पर चढ़ाई की और गर्दभिल्ल को हराकर वहां पर अपना आधिपत्य जमाया। गर्दभिल्ल के उत्तराधिकारी विक्रमादित्य ने किसी तरह आक्रमणकारियों को भगाया और फिर से अपना अधिकार स्थापित किया। मथुरा का जैन स्तूप :
मथुरा के कंकाली टीले की खुदाई में प्राप्त एक जैन स्तूप पर ईसा की दूसरी शती का शिलालेख मिला है। उस शिलालेख से यह जानकारी होती है कि वह स्तूप देवों द्वारा बनाया गया था। किन्तु ऐसे विश्वास के पीछे छिपा हुआ सत्य यह है कि उस समय उस स्तूप को लोग स्मरणातीत प्राचीन मानते थे। मथुरा की मूर्तियां तथा शिलालेख जैनधर्म के इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। कुमारपाल और हेमचन्द्र :
गुजरात-काठियावाड़ में प्रारंभिक शताब्दियों में भी जैनधर्म का प्रचार था। मध्ययुग में सिद्धराज जयसिंह ( १०६४११४३ ई०) ने, जो स्वयं शिवोपासक था, एक महान् जैनाचार्य तथा ग्रन्थकार हेमचन्द्र को विशिष्ट विद्वान् के रूप में अपने दरबार का सदस्य बनाया था। कुमारपाल ( ११४३-११७३ ई० ) ने तो हेमचन्द्र से प्रभावित होकर अपने को जैनधर्म का अनुयायी ही बना लिया था। उसने गुजरात को एक आदर्श जैन राज्य बनाने का प्रयास किया। . उस समय हेमचन्द्र ने अवसर का पूर्ण लाभ उठाते हुए अपनी बहुविध वैज्ञानिक रचनाओं द्वारा एक विशिष्ट जैन संस्कृति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org