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________________ ज्ञानमीमांसा ३१३ वाद का साक्षी है । किसी अन्य आधार पर होने वाला प्रामाण्यनिश्चय परतः प्रामाण्यवाद का समर्थक है । प्रमाण का फल : २ प्रमाण के भेद-प्रभेद की चर्चा करने के आवश्यक है कि प्रमाण का फल क्या है ? क्यों की जाय ? प्रमाण चर्चा से क्या लाभ है ? प्रमाण का प्रयोजन क्या है ? प्रमाण का मुख्य प्रयोजन अर्थप्रकाश है । " अर्थ का ठीक-ठीक स्वरूप समझने के लिए प्रमाण का ज्ञान आवश्यक है । प्रमाण- अप्रमाण के विवेक के बिना अर्थ के यथार्थ - अयथार्थ स्वरूप का ज्ञान नहीं हो सकता। इसी बात को दूसरी तरह से यो कह सकते हैं- प्रमाण का साक्षात् फल अज्ञान का नाश है । केवलज्ञान के लिए उसका फल सुख और उपेक्षा है । शेष ज्ञानों के लिए ग्रहण और त्यागबुद्धि है । " सामान्य दृष्टि से प्रमाण का फल यही है कि अज्ञान नहीं रहने पाता । जैसे सूर्य के उदय से अन्धकार का सर्वनाश हो जाता है उसी प्रकार प्रमाण से अज्ञान का विनाश होता है । यह साधारण फल है । इस अज्ञाननाश का किसके लिए क्या फल है, इसे बताने के लिए कहा गया है कि जिसे केवलज्ञान होता है उसके लिए अज्ञाननाश का यही फल है कि उसे आत्म-सुख प्राप्त होता है और जगत् के पदार्थों के प्रति उसका उपेक्षाभाव रहता है । दूसरे लोगों के लिए अज्ञाननाश का फल ग्रहण और व्यागरूप बुद्धि का उत्पन्न होना है । अमुक वस्तु निर्दोष १. फलमर्थ प्रकाश: । वही, १.१.३४. - २. प्रमाणस्य फलं साक्षादज्ञान विनिवर्तनम् । केवलस्य सुखोपेक्षे, शेषस्यादानहानधीः ॥ Jain Education International पहले यह जानना प्रमाण की चर्चा -न्यायावतार, २८. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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