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जैन धर्म-दर्शन न्द्रियप्रत्यक्ष, घ्राणेन्द्रियप्रत्यक्ष, जिह्वन्द्रियप्रत्यक्ष और स्पर्शनेन्द्रियप्रत्यक्ष ।
नोइन्द्रियप्रत्यक्ष के तीन प्रकार हैं-अवधिप्रत्यक्ष, मनःपर्ययप्रत्यक्ष और केवल प्रत्यक्ष ।
मानसप्रत्यक्ष को अलग नहीं गिनाया गया है। सम्भवतः उसका पाँचों इन्द्रियों में समावेश कर लिया गया है। आगे के दार्शनिकों ने इसे स्वतन्त्र स्थान दिया है। ___ अनुमान-अनुमान प्रमाण के तीन भेद किये गये हैं-पूर्ववत्, शेषवत् और दृष्टसाधर्म्यवत् । न्याय, बौद्ध और सांख्य दर्शन में भी अनुमान के ये ही तीन भेद बताये गये हैं। उनके यहाँ अन्तिम भेद का नाम दृष्टसाधर्म्यवत् न होकर सामान्यतोदृष्ट है।
पूर्ववत्-पूर्वपरिचित लिंग ( हेतु ) द्वारा पूर्वपरिचित पदार्थ का ज्ञान करना पूर्ववत् अनुमान है। एक माता अपने पुत्र को बाल्यावस्था के समय देखती है। पुत्र कहीं बाहर चला जाता है। कुछ वर्षों के बाद वह युवावस्था में प्रविष्ट हो जाता है। जब वह वापिस घर आता है तो पहले माता उसे नहीं पहचान पाती है। थोड़ी देर बाद उसके शरीर पर कोई ऐसा चिह्न देखती है जो बाल्यावस्था में भी था। यह देखते ही वह तुरन्त जान जाती है कि यह मेरा ही पुत्र है । यह पूर्ववत् अनुमान का उदाहरण है। १. न्यायसूत्र, १.१.५; उपायहृदय,पृ० १३; सांख्यकारिका, ५-६. २. माया पुत्तं जहा नळं जुवाणं पुणरागयं । काई पच्चभिजाणेउजा, पुलिंगेण केणई । तं जहा-खत्तेण वा दण्णेण वा लंबणेण वा मसेण वा तिलएण वा ।
-अनुयोगद्वारसूत्र, प्रमाण प्रकरण.
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