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________________ ज्ञानमीमांसा शब्द का जहाँ प्रयोग है वहाँ भी चार भेद मिलते हैं-प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और आगम ।' कहीं-कहीं पर प्रमाण के तीन भेद भी मिलते हैं । स्थानांगसूत्र में व्यवसाय को तीन प्रकार का कहा है-प्रत्यक्ष, प्रात्ययिक और आनुगामिक ।' व्यवसाय का अर्थ होता है निश्चय । निश्चयात्मक ज्ञान ही प्रमाण है। ___ प्रमाण के कितने भेद होते हैं, इस विषय में अनेक परम्पराएं प्रचलित रही हैं । आगमों में जो विवरण मिलता है वह तीन और चार भेदों का निर्देश करता है। सांख्य प्रमाण के तीन भेद मानते आए हैं। नैयायिकों ने चार भेद माने हैं। ये दोनों परम्पराएं स्थानांगसूत्र में मिलती हैं। अनुयोगद्वार में प्रमाण के भेदों का किस प्रकार वर्णन है ? संक्षेप में देखने का प्रयत्न किया जाएगा। प्रत्यक्ष-प्रत्यक्ष प्रमाण के दो भेद हैं-इन्द्रियप्रत्यक्ष और नोइन्द्रियप्रत्यक्ष। इन्द्रियप्रत्यक्ष के पाँच भेद हैं-श्रोत्रेन्द्रियप्रत्यक्ष, चक्षुरि१. अहवा हेऊ चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-पच्चक्खे, अणुमाणे, ओवम्मे, आगमे ।-३३८. २. तिविहे ववसाए पण्णत्ते, तं जहा-पच्चक्खे, पच्चइए, अणुगामिए । -१८५. व्यवसायो निश्चयः स च प्रत्यक्ष अवधिमनःपर्ययकेवलाख्यः, प्रत्ययात इन्द्रियलक्षणात निमिताज्जातः प्रात्ययिकः साध्यमग्न्यादिकमनुगच्छतिसाध्याभावे न भवति योधूपादिहेतुः सोऽनुगामी ततो जातम् आनुगामिकम्-अनुमानम्, तद्योव्यवसाय-आनुगामिक एवेति । अथवा प्रत्यक्षः स्वयंदर्शनलक्षणः प्रात्ययिक प्राप्तवचनप्रभवः, तृतीयस्तय. बेति। -अभयदेवकृत व्याख्या. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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