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ज्ञानमीमांसा
૨૭૯ अवधिज्ञान के उपर्युक्त छ: भेद स्वामी के गुण की दृष्टि से हैं। इनके अतिरिक्त क्षेत्र आदि की दृष्टि से तीन भेद और होते हैं-देशावधि, परमावधि और सर्वावधि ।' देशावधि एवं परमावधि के पुनः तीन भेद होते हैं-जघन्य, उत्कृष्ट और अजघन्योत्कृष्ट । सर्वावधि एक ही प्रकार का होता है। __ जघन्य देशावधि का क्षेत्र उत्सेधांगुल' का असंख्यातवाँ भाग है। उत्कृष्ट देशावधि का क्षेत्र सम्पूर्ण लोक है। अजधन्योत्कृष्ट देशावधि का क्षेत्र इन दोनों के बीच का है, जो असंख्यात प्रकार का है।
जघन्य परमावधि का क्षेत्र एक प्रदेशाधिक लोक है । उत्कृष्ट परमावधि का क्षेत्र असंख्यात लोकप्रमाण है। अजघन्योत्कृष्ट परमावधि का क्षेत्र इन दोनों के बीच का है।
सर्वावधि का क्षेत्र उत्कृष्ट परमावधि के क्षेत्र से बाहर असंख्यात क्षेत्र-प्रमाण है।
लोक से अधिक क्षेत्र नहीं हो सकता, क्योंकि लोक के बाहर कोई पदार्थ नहीं जिसे अवधिज्ञानी जान सके। इसलिए जहाँ लोक से अधिक क्षेत्र का निर्देश है वहाँ उत्तरोत्तर उतने ही प्रमाण में ज्ञान की सूक्ष्मता समझना चाहिए। जिस तरह क्षेत्र की दृष्टि से विभिन्न प्रकार हैं उसी प्रकार काल की दृष्टि से भी अनेक भेद हो सकते हैं। उन सब का वर्णन करना यहाँ अभीष्ट नहीं। १. पुनरपरेऽवधस्त्रयो भेदाः देशावधिः परमावधिः सर्वावधिश्चेति ।
-वही, १.२२.५. २. अंगुल एक प्रकार का क्षेत्र का नाप है । यह तीन प्रकार का है
उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल और आत्मांगुल । भिन्न-भिन्न पदार्थों के जाप के लिए भिन्न-भिन्न अंगुल निश्चित हैं।
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