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जैन परम्परा का इतिहास
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दूसरा प्रश्न उपस्थित किया- 'वर्धमान ने वस्त्रधारण का निषेध किया है लेकिन पार्श्व ने एक अधोवस्त्र तथा उपरिवस्त्र धारण करने की अनुमति दी है, ये दोनों नियम एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिये बनाये गये हैं, तो फिर दोनों में अन्तर क्यों ?" गौतम ने उत्तर दिया- 'विभिन्न बाह्य चिह्नों का प्रयोग संयमविषयक उपयोगिता तथाविशिष्टता की दृष्टि से होता है परन्तु वास्तव में मोक्ष के साधन तो तीन ही हैं- सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन तथा सम्यक् चारित्र ।' इस उत्तर से भी केशी को संतोष हुआ । तब उन्होंने गौतम से पंचव्रत-धर्म अंगीकार किया ।
उत्तराध्ययन सूत्र के इस वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि पार्श्व तथा महावीर के अनुयायियों के बीच प्रमुख दो प्रकार के मतभेद थे - प्रथम का संबंध व्रतों से था और दूसरे का वस्त्रों से । पार्श्व ने चार व्रतों का उपदेश दिया था परन्तु महावीर ने ब्रह्मचर्य नामक पांचवां व्रत उसमें बढ़ा दिया । पार्श्व ने साधुओं को वस्त्र धारण करने को अनुमति दी थी लेकिन महावीर ने वस्त्र धारण का निषेध किया । अस्तु, केशी और उनके शिष्यों ने वस्त्रत्याग के बिना ही पंचव्रत ग्रहण किये और इस तरह महावीर के संघ में दो प्रकार के मुनि हुएसचेलक अर्थात् जो वस्त्र धारण करते थे और अचेलक अर्थात् जो वस्त्र धारण नहीं करते थे ।
भगवान् महावीर का जन्म वैशाली के उत्तर भागान्तर्गत कुण्डपुर (कुण्डग्राम) के क्षत्रिय सिद्धार्थ और त्रिशला के पुत्र के रूप में हुआ था। वे ज्ञातृवंश के थे। उनका जन्म चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन हुआ था । जबसे उन्होंने त्रिशला के गर्भ में पदा
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