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जैन परम्परा का इतिहास . अवस्था में निर्वाण प्राप्त किया अतः उनका जन्म-समय ई०पूर्व ५६६ के आस-पास आता है।
बौद्ध आगम-ग्रन्थों में नाटपुत्त (णायपुत्त-ज्ञातपुत्र) एवं निगंठों (णिग्गंथों-निर्ग्रन्थों) अर्थात् महावीर एवं जैनों के संबंध में बहुत से उल्लेख मिलते हैं। उनमें नाटपुत्त की मृत्यु पावा में उस समय उल्लिखित है जबकि बुद्ध धर्मोपदेश में लगे हुए थे। हेमचन्द्र के मत से महावीर को चन्द्रगुप्त के राज्याभिषेक से १५५ वर्ष पूर्व मुक्ति प्राप्त हुई थी। तदनुसार महावीर का जीवन-काल ई० पूर्व ५४६ से ४७७ के आसपास आता है अर्थात् उनकी मृत्यु बुद्ध की मृत्यु से कुछ बाद में हुई। कुछ विद्वान् इस मत का समर्थन करते हैं। ___ इसमें कोई शक नहीं है कि पार्श्व महावीर से २५० वर्ष पहले हुए थे। जैन आगमों में ऐसा उल्लेख है कि महावीर के माता-पिता पार्श्व, जिनकी मृत्यु महावीर की मृत्यु (५२७ ई० पूर्व) से २५० वर्ष पहले हुई थी, के अनुयायी थे। चूंकि पार्श्व की आयु १०० वर्ष की थी अतः उनका समय ई० पूर्व ८७७७७७ आता है।
महावीर किसी नये धर्म के प्रवर्तक नहीं थे अपितु एक ऐसे धर्म के संशोधक एवं आराधक थे जो बहुत पहले से चला आ रहा था। उत्तराध्ययन सूत्र (अ० २३) से इस संबंध में काफी अच्छी जानकारी प्राप्त होती है। उसमें इस प्रकार उल्लेख है :
पाव-परम्परा में केशी नाम के एक प्रसिद्ध आचार्य थे। वे एक बार अपने शिष्यों के साथ श्रावस्ती नगरी पहुँचे और वहां के तिन्दुक नामक उद्यान में ठहरे।
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