SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वविचार . १८७ वर्तित किया जा सकता है।' जब वायु में रूप सिद्ध हो जाता हैं तो रस और गंध तो सिद्ध हो ही जाते है । वैशेषिक तेज में रस और गन्ध नहीं मानते । वे कहते हैं कि तेज में स्पर्श और रूप ही होता है । यह धारणा भी मिथ्या है। तेज-अग्नि भी एक प्रकार का पुद्गल द्रव्य है इसलिए उसमें चारों गुण होते हैं। विज्ञान भी इस बात को मानता है कि अग्नि एक भौतिक द्रव्य है और उसमें उष्णता का अंश अधिक रहता है। __गन्ध केवल पृथ्वी में ही है, ऐसा वैशेषिकों का विश्वास है। यह भी ठीक नहीं। हमें साधारण तौर से वायु, अग्नि आदि में गंध की प्रतीति नहीं होती। इसके आधार पर हम यह नहीं कह सकते कि इनमें गंध है ही नहीं। चींटी जितनी आसानी से शक्कर की गंध का पता लगा लेती है उतनी आसानी से हम नहीं लगा सकते । बिल्ली जितनी सरलता से दही और दूध की गंध के आधार पर वहाँ तक पहुँच जाती है उतनी सरलता से हमलोग नहीं पहुंच सकते। इसका अर्थ यही है कि किसी की इंद्रियशक्ति इतनी तीव्र होती है कि वह बहुत दूर से साधारण सी वस्तु की गंध का पता लगा लेता है। किसी की इन्द्रियशक्ति इतनी मन्द होती है कि उसे तीव्र गंध का भी पता नहीं लग सकता। इसी प्रकार वायु, पानी, अग्नि आदि में गंध की साधारणतया प्रतीति नहीं होती तथापि उनमें रूप, रस आदि की तरह गंध भी होती है। वैशेषिक दर्शन जिस प्रकार पृथ्वी आदि द्रव्यों में भिन्न गुण मानता है उसी प्रकार भिन्न द्रव्यों के भिन्न परमाणु भी मानता 1. Air can be converted bluish liquid by continuous cooling, just as steam can be converted into water. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy