________________
तत्वविचार
गन्ध दो प्रकार की है— सुरभिगन्ध और दुरभिगन्ध । वर्ण के पाँच प्रकार हैं- नील, पीत, शुक्ल, कृष्ण और लोहित ।
ये बीस मुख्य भेद हैं । इनका संख्यात, असंख्यात और अनन्त भेदों में विभाजन हो सकता है ।" एक पुद्गल परमाणु में कम-से-कम कितने स्पर्शादि होते हैं, इसका निर्देश परमाणु के स्वरूप वर्णन के समय किया जायगा । वर्णादि पुद्गल के अपने धर्म हैं या हम लोग इन धर्मों का पुद्गल में आरोप करते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर यही है कि ये धर्म पुद्गल के ही धर्म हैं । जो धर्म जिसका न हो उसका हमेशा अरोप नहीं हो सकता अन्यथा कोई भी धर्म वास्तविक न होगा । यह ठीक है कि वर्णादि के प्रतिभास में थोड़ा-बहुत अन्तर पड़ सकता है । एक वस्तु एक व्यक्ति को अधिक काली दीख सकती है और दूसरे को थोड़ी कम काली । इसका अर्थ यह नहीं होता कि वस्तु का काला वर्ण ही यथार्थ है । यदि ऐसा होता तो कोई भी वस्तु काली दिखाई देती क्योंकि कालापन वस्तु में तो है नहीं । जिसकी जब इच्छा होती काली वस्तु दिखाई देती । इसलिए वर्णादि धर्मों को वस्तुगत ही मानना चाहिए। उनकी प्रतीति के लिए कुछ कारणों का होना कुछ प्राणियों के लिए आवश्यक है, यह ठीक है; किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि वे गुण अपने आप में कुछ नहीं हैं । गुण स्वतन्त्र रूप से यथार्थ हैं और उनकी प्रतीति के कारण अलग हैं। दोनों भिन्न-भिन्न चीजें हैं। न तो गुणों की सत्ता से आवश्यक कारण असत् हो सकते हैं और न कारणों के रहने से गुण ही मिथ्या हो सकते हैं । दोनों का स्वतन्त्र अस्तित्व है ।
१. सर्वार्थसिद्धि, ५. २३.
Jain Education International
१७६
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org