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जैन धर्म-दर्शन जैन संस्कृति की प्राचीनता पर पर्याप्त प्रकाश डालती है। इसका निषेध नहीं किया जा सकता कि भारतीय संस्कृति की दोनों धाराएं एक-दूसरे को प्रभावित करती रही हैं। वास्तव में भारतीय संस्कृति एक मिलीजुली संस्कृति है जिसके विकास में इसकी दोनों ही धाराओं-ब्राह्मण और धमण-ने अपना-अपना योगदान दिया है । यह सत्य है कि दोनों धाराओं में बहुत सी समानताएं हैं, किन्तु यह भी असत्य नहीं है कि दोनों की अपनीअपनी विशेषताएं एवं विभिन्नताएं हैं। प्रतिमावाद एवं विगम्बरत्व : ___ सिन्धु-सभ्यता का समय ई०पूर्व ३००० माना जाता है। यह वैदिक काल में प्रचलित आर्य सभ्यता से भिन्न है। तुलना के आधार पर यह प्रतीत होता है कि इन दोनों सभ्यताओं में तादात्म्य संबंध नहीं था। वैदिक धर्म सामान्यतः अमूर्तिवादी है, परन्तु मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा में मूर्तिवाद की झलक स्पष्ट दीखती है । मोहनजोदड़ो के घरों में वेदिका का अभाव दिखाई देता है । साथ ही वहां पर बहुत से नग्न चित्र तथा नग्न मूर्तियां भी मिली हैं जिन्हें तपस्वी योगियों के चित्र अथवा मूर्तियां माना जा सकता है। मूर्तिवाद और नग्नता जैन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं हैं।
मोहनजोदड़ो की नग्न मूर्तियों से यह स्पष्ट इंगित होता है कि सिन्ध-सभ्यता के लोग केवल योग की साधना ही नहीं करते थे अपितु योगियों की प्रतिमाओं की पूजा भी करते थे। वहां मुद्राओं पर अंकित चित्रों में बैठे हुए देवों के साथ-साथ खड़े हुए देवों के भी चित्र हैं जो कायोत्सर्ग अवस्था को प्रतिभासित
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