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________________ जैन परम्परा का इतिहास भारतीय संस्कृति अपनी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है । इसमें दो धाराएं प्रवाहित होती हैं-श्रमण तथा ब्राह्मण । ब्राह्मण धारा के अन्तर्गत वैदिक, आर्य अथवा हिन्दू परम्पराएं आती हैं तथा श्रमण धारा में जैन, बौद्ध और इसी तरह की अन्य तापसी अथवा यौगिक परम्पराएं समाविष्ट हैं। ब्राह्मण मतानुयायी वेद तथा वैदिक साहित्य को प्रमाणभूत मानते हैं। जैतों एवं बौद्धों के अपने-अपने सिद्धान्तग्रन्थ हैं जिन्हें वे प्रमाणरूप अंगीकार करते हैं। जैनधर्म : जनधर्म संसार के प्राचीनतम धर्मों में से एक है। यह भारत का एक अति प्राचीन तथा स्वतंत्र धर्म है। ऐसी धारणा बिल्कुल ही गलत है कि इसका संस्थापन महावीर के द्वारा हुआ। यहां तक कि पार्श्वनाथ को भी इसका जन्मदाता नहीं कहा जा सकता । इसी तरह यह भी कहना सही नहीं है कि जैनधर्म का जन्म वैदिक धर्म की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ है। वास्तव में जैनधर्म पूर्णतः एक स्वतंत्र धर्म है। यह एक प्रकार से वैदिक धर्म से भी पुराना है । जैन संस्कृति जो अब भारत में श्रमणधारा का प्रतिनिधित्व करती है, अपने निषेधात्मक रूप में अवैदिक, अनार्य तथा अब्राह्मण है। इसकी अपनी विशेषताएं हैं। यह स्मरणातीत काल से इस भारत भूमि पर अपना विकास एवं विस्तार कर रही है। मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा की सिन्धु-सभ्यता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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