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________________ तत्त्वविचार प्राणी का जीवन केवल विचार के एक क्षण तक ठहरता है। जैसे ही विचार का वह क्षण समाप्त हो जाता है वैसे ही वह प्राणी समाप्त हो जाता है।' पाश्चात्य परम्परा में ग्रीक दार्शनिक हेराक्लिटस इसी विचारधारा का समर्थक था। उसने अभेदवाद को भ्रान्ति बताया। उसने यहाँ तक कहा कि एक ही क्षण में पदार्थ वही है भी सही और नहीं भी है । परिवर्तन ही पदार्थ का प्राण है । पदार्थ एक क्षण तक ठहरता है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि पदार्थ हमेशा बदलता रहता है। एकता और अन्वय की प्रतीति इन्द्रियजन्य भ्रान्ति है । जो इन्द्रियों का विश्वास करता है वही एकता के धोखे में फंसता है। तर्क या हेतु से व्यक्ति कदापि एकता की सिद्धि नहीं कर सकता । जो व्यक्ति इन्द्रियों से ऊपर उठ जाता है और बुद्धि पर विश्वास रखता है वह एकता के भ्रम से हमेशा दूर रहता है। नित्यता की भ्रान्ति इन्द्रियों की देन है। तर्क के बल से ही हम परिवर्तन या अनित्यता तक पहुंच सकते हैं। ह्य म ने भी एकता को समानता कहकर अन्वय और अभेद का खण्डन किया। उसने कहा-मैं अपनी आत्मा को कदापि नहीं पकड़ सकता । जब कभी मैं ऐसा करने का प्रयत्न करता हूं तो अमुक अनुभव ही मेरे हाथ लगता है। विलियम जेम्स ने कहा कि चलता हुआ विचार स्वयं ही विचा १. विशुद्धि मार्ग, ८. 2. The illusion of permanence is ascribed to the senses. It is by reason that we arise to the knowledge of the . law of becoming. 3. I never can catch 'myself'. Whenever I try, I stum. ble on this or that perception, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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