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________________ जैन धर्म-दर्शन विकास हुआ, सबका समावेश किया। प्रभाचन्द्रकृत स्त्रीमुक्ति और केवलिकवलाहार की चर्चा का श्वेताम्बर दृष्टि से उत्तर देने से भी वे न चूके । इतना ही नहीं अपितु कहीं-कहीं तो उन्होंने अन्य दार्शनिकों के आक्षेपों का उत्तर बिलकुल नये ढंग से दिया । इस तरह वादिदेवसूरि अपने समय के एक श्रेष्ठ दार्शनिक थे, इसमें कोई संशय नहीं। इनका समय वि० सं० ११४३ से १२२६ तक है। हेमचन्द्र : ___ आचार्य हेमचन्द्र का जन्म वि० सं० ११४५ की कार्तिकी पूर्णिमा के दिन अहमदाबाद के समीप धन्धुका ग्राम में हुआ। इनका बाल्यकाल का नाम चंगदेव था। इनके पिता शैवधर्म के अनुयायी थे और माता जैनधर्म पालती थीं। आगे जाकर ये देवचन्द्रसुरि के शिष्य बने और इनका नाम सोमचन्द्र रखा गया। देवचन्द्रसूरि अपने शिष्य के गुणों पर बहुत प्रसन्न थे और साथ ही सोमचन्द्र की विद्वत्ता की धाक भी मानते थे। वि० सं० ११६६ की वैशाख शुक्ला तृतीया के दिन सोमचन्द्र को नागौर में आचार्यपद प्रदान किया गया। सोमचन्द्र के शरीर की प्रभा और कान्ति सुवर्ण के समान थी अतः उनका नाम हेमचन्द्र रखा गया । यह उनके नाम का इतिहास है। ___ आचार्य हेमचन्द्र की प्रतिभा बहुमुखी थी, यह उनकी कृतियों को देखने से स्पष्ट मालूम हो जाता है। कोई ऐसा महत्त्वपूर्ण विषय न था जिस पर उन्होंने अपनी कलम न चलाई हो । व्याकरण, कोश, छन्द, अलंकार, काव्य, चरित्र, न्याय आदि अनेक विषयों पर विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं। प्रमाणशास्त्र पर आचार्य हेमचन्द्र का प्रमाणमीमांसा ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमें पहले सूत्र हैं और फिर उन पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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