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________________ उत्तर भारत के जैन मूर्ति अवशेषों का ऐतिहासिक सर्वेक्षण ] एवं पाव की मूर्तियों में यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं। पश्चिमी भ्रमिका के वितानों पर ऋषभ, शांति, नेमि, पार्श्व और महावीर के जीवनदृश्य उत्कीर्ण हैं (चित्र १३, २२, ४०)। एक वितान पर २४ जिनों के माता-पिता की मूर्तियां अंकित हैं। मन्दिर के पश्चिमी और उत्तरी प्रवेश-द्वारों के समीप २४ जिनों की माताओं का चित्रण करने वाले दो पट्ट भी सुरक्षित हैं। प्रत्येक स्त्री आकृति की दाहिनी भुजा में फल और बायीं में बालक स्थित हैं । १२८१ई० के एक पट्ट पर मुनिसुव्रत के जीवन की शकुनिका बिहार की कथा उत्कीर्ण है।' शान्तिनाथ मन्दिर के समान ही यहां भी महाविद्याओं, शान्तिदेवी, सरस्वती, अम्बिका, सर्वानुभूति एवं ब्रह्मशान्ति की अनेक मूर्तियां हैं (चित्र ८९)। यहां मानवी महाविद्या की भी मूर्तियां मिली हैं। पार्श्वनाथ मन्दिर-पार्श्वनाथ मन्दिर का निर्माण बारहवीं शती ई० में हुआ। देवकुलिकाओं में ११७९ ई० से १२०२ई० के मध्य की २४ जिन मूर्तियां सुरक्षित हैं। गूढ़मण्डप की दो पार्श्व मूर्तियों में यक्ष और यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं, पर यहां उनके सिरों पर सर्पफणों के छत्र प्रदर्शित हैं। गूढमण्डप ही में अजित और शान्ति (१११९-२० ई०) की भी दो मूर्तियां हैं (चित्र २०)। महाविद्याओं में ज्वालापात्र से युक्त ज्वालामालिनी विशेष लोकप्रिय थी। मानवी, गान्धारी एवं मानसी को केवल एक-एक मति है। सरस्वती, अम्बिका एवं शान्तिदेवी की भी कई मतियां हैं। मन्दिर में चार ऐसी भी चतर्भूज देवियां हैं जिनकी पहचान सम्भव नहीं है। देवकुलिका ५ की ऐसी एक मयूरवाहना देवी की भुजाओं में बरदमुद्रा, नि शूल, स्रक एवं फल हैं। दूसरी वृषभवाहना देवी के करों में वरदमुद्रा, पाश, ध्वज एवं फल हैं। तीसरी देवी की ऊपरी भुजाओं में त्रिशू ल, एवं चौथी देवी की ऊपरी भुजाओं में शूल एवं अंकुश प्रदर्शित हैं । - नेमिनाथ मन्दिर–नेमिनाथ मन्दिर भी बारहवीं शती ई० में बना। यह भी चतुर्विंशति जिनालय है। यह रया का विशालतम जैन मन्दिर है। गढमण्डप के एक पट (१२५३ ई०) पर १७२ जिनों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। गूढमण्डप में पांच और सात सर्पफणों के छत्रों वाली सुपाश्वं (स्वस्तिक लांछन सहित) एवं पार्श्व (११५७ ई०) की दो मूर्तियां हैं। दोनों उदाहरणों में यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं। जटाओं से शोभित गूढ़मण्डप को दो ऋषम मूर्तियों (१२५७ ई०) में यक्षी चक्रेश्वरी है पर यक्ष सर्वानुभूति ही है। त्रिकमण्डप की रथिका में १२६५ ई० का एक नन्दीश्वर पट्ट है। __मन्दिर की भीति पर महाविद्याओं, यक्षियों, चतुर्भुज दिक्पालों एवं गणेश की आकृतियां उत्कीर्ण हैं। महाविद्याओं में केवल रोहिणी, प्रज्ञप्ति, गांधारी, मानसी एवं महामानसी की मूर्तियां नहीं उत्कीर्ण हैं । ऊपरी भुजाओं में त्रिशूल या पाश धारण करने वाली मन्दिर की कुछ देवियों की पहचान सम्भव नहीं है । कुछ मूर्तियों में देवी की दो भुजाओं में धन का थैला प्रदर्शित है। देवी का स्वरूप सर्वानुभूति यक्ष से प्रभावित प्रतीत होता है । अधिष्ठान पर चतुर्भुज गणेश की भी एक मूर्ति है । कुंभारिया में गणेश की मूर्ति का यह अकेला उदाहरण है (चित्र ७७) । मूषकारूढ़ गणेश के करों में स्वदंत, परशु, सनालपद्म और मोदकपात्र हैं। मुखमण्डप की पूर्वी भिति पर चतुर्भुज महालक्ष्मी की ध्यानमुद्रा में आसीन मूर्ति है। मूर्तिलेख में देवी को 'महालक्ष्मी' कहा गया है। देवकूलिकाओं की पश्चिमी भिति पर मयूरवाहना सरस्वती और पद्मावती यक्षी (२) निरूपित हैं (चित्र ५६, ७६) । १ दो पूर्ववर्ती उदाहरण जालोर के पार्श्वनाथ मन्दिर और लूणवसही में हैं। २ मन्दिर का प्राचीनतम लेख ११०४ ई० का है। ३ देवकुलिका १८-मुसल और वज्र से युक्त । ४ देवकुलिका ५-हंसवाहना एवं वज्र और पाश से युक्त । ५ इन चतुर्भुज मूर्तियों में देवियों की निचली भुजाओं में अमय-(या वरद-) मुद्रा और फल (या कलश) प्रदर्शित हैं। ६ मन्दिर का प्राचीनतम लेख वि०सं० ११९१ (= ११३४ ई०) का है-सोमपुरा, कान्तिलाल फूलचन्द, पू०नि०, पृ० १५८ ७ सरस्वती के साथ मयूर वाहन का उल्लेख केवल दिगम्बर परम्परा में है। ८ कोष्ठ की संख्या यहां और अन्यत्र मूर्ति-संख्या की सूचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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