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________________ [ जैन प्रतिमाविज्ञान मूर्तियों में सामान्यतः जिनों के लांछन नहीं प्रदर्शित हैं । केवल लटकती जटाओं एवं पांच और सात सर्पफणों के छत्रों के आधार पर क्रमशः ऋषभ, सुपाश्वं एवं पार्श्व की पहचान सम्भव है । लांछनों के चित्रण के स्थान पर पीठिका लेखों में जिनों के नामोल्लेख की परम्परा लोकप्रिय थी ।" सिंहासन छोरों पर अधिकांशतः यक्ष-यक्षी के रूप में सर्वानुभूति एवं अम्बिका आमूर्तित हैं । कुछ उदाहरणों में ऋषभ एवं पार्श्व के साथ पारम्परिक यक्ष- यक्षी भी निरूपित हैं । गुजरात - राजस्थान के अन्य क्षेत्रों की श्वेताम्बर जिन मूर्तियों में भी यही सामान्य विशेषताएं प्रदर्शित हैं । मन्दिर की भ्रमिका के वितानों पर जिनों के जीवन दृश्यों, मुख्यतः पंचकल्याणकों के विशद् चित्रण हैं । इनमें ऋषभ, अर (?) 3, शान्ति, नेमि, पाखं एवं महावीर के जीवनदृश्य हैं (चित्र १४, २९, ४१ ) । दक्षिण-पूर्वी कोने की देवकुलिका में १२०९ ई० का एक जिन समवसरण है । पश्चिमी भ्रमिका के वितान पर २४ जिनों के माता-पिता भी आमूर्तित हैं । आकृतियों के नीचे उनके नाम खुदे हैं । माता की गोद में एक बालक (जिन) आकृति बैठी है। कुंमारिया के महावीर मन्दिर के वितान पर भी जिनों के मातापिता चित्रित हैं । मन्दिर के विभिन्न भागों पर रोहिणी, वज्रांकुशा, वज्रशृंखला, अप्रतिचक्रा, पुरुषदता, वैरोट्या, अच्छुप्ता, मानसी और महामानसी महाविद्याओं की अनेक मूर्तियां हैं। महाविद्या मानवी की एक भी मूर्ति नहीं है । पूर्वी भ्रमिका के वितान पर १६ महाविद्याओं का सामूहिक चित्रण है (चित्र ७८ ) । १६ महाविद्याओं के सामूहिक चित्रण का यह प्राचीनतम, और गुजरात के सन्दर्भ में एकमात्र उदाहरण है । 3 ललितमुद्रा में आसीन इन महाविद्याओं के साथ वाहन नहीं प्रदर्शित हैं । उनके निरूपण में पारम्परिक क्रम का भी निर्वाह नहीं किया गया । मानसी एवं महामानसी के अतिरिक्त महाविद्या समूह की अन्य सभी आकृतियों की पहचान सम्भव है । महाविद्याओं के अतिरिक्त सरस्वती एवं शान्तिदेवी" की भी कई मूर्तियां हैं। पश्चिमी शिखर के समीप द्विभुज अम्बिका की एक मूर्ति है । त्रिकमण्डप के वितान पर ब्रह्मशान्ति यक्ष, क्षेत्रपाल और अग्नि निरूपित हैं । त्रिकमण्डप सोपान की दीवार पर भी ब्रह्मशान्ति यक्ष की एक मूर्ति है । मन्दिर में ऐसी भी दो देवियां हैं जिनकी पहचान संभव नहीं है । एक देवी की भुजाओं में अंकुश एवं पाश है और वाहन गज या सिंह है । देवी सर्वानुभूति यक्ष की मूर्तिवैज्ञानिक विशेषताओं से प्रभावित प्रतीत होती । दूसरी देवी की भुजाओं में त्रिशूल एवं सर्प है और वाहन वृषभ है । देवी हिन्दू शिवा के लाक्षणिक स्वरूप से प्रभावित है। ये देवियां न केवल कुंमारिया वरन् गुजरात - राजस्थान के अन्य श्वेताम्बर स्थलों पर भी लोकप्रिय थीं । महावीर मंदिर – १०६२३० का महावीर मन्दिर मी चतुर्विंशति जिनालय है ।" देवकुलिकाओं की जिन मूर्तियां १०८३ ई० से ११२९ ई० के मध्य की हैं । देवकुलिका ७ और १५ की पांच और सात सर्पफणों के छत्रों से युक्त सुपार्श्व १ पीठिका लेखों के आधार पर शान्ति (देवकुलिका १) और पद्मप्रभ (देवकुलिका ७ ) की पहचान सम्भव है । २ अर के जीवनदृश्य की सम्भावित पहचान केवल लेख के 'सुदर्शन' एवं 'देवी' नामों के आधार पर की जा सकती है जिनका जैन परम्परा में अर के पिता और माता के रूप में उल्लेख है । ३ तिवारी, एम० एन०पी०, 'दि आइकनोग्राफी ऑव दि सिक्सटीन जैन महाविद्याज् ऐज रिप्रेजेन्टेड इन दि सीलिंग ऑव दि शान्तिनाथ टेम्पल, कुंभारिया', संबोधि, खं० २, अं० ३, पृ० १५-२२ ४ पद्म, पुस्तक, वीणा एवं स्रुक में से कोई दो सामग्री ऊपरी भुजाओं में, और अभय - ( या वरद - ) मुद्रा एवं कमण्डलु निचली भुजाओं में हैं । ५ शान्तिदेवी की ऊपरी दो भुजाओं में पद्म हैं । ६ ब्रह्मशान्ति यक्ष के करों में वरदाक्ष, छत्र, पुस्तक एवं कमण्डलु प्रदर्शित हैं । ७ त्रिशूल, सर्प एवं वृषभ वाहन से युक्त देवी की एक मूर्ति पार्श्वनाथ मन्दिर के मूलप्रासाद की भित्ति पर भी है । ८ सोमपुरा, कान्तिलाल फूलचन्द, पु०नि०, पृ० १२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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