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उत्तर भारत के जैन मूति अवशेषों का ऐतिहासिक सर्वेक्षण ] ल० १५० ई० पू० से १०२३ ई० के मध्य की है।' इस प्रकार मथुरा की जैन मूतियां आरम्भ से मध्ययुग तक के प्रतिमाविज्ञान की विकास शृङ्खला उपस्थित करती हैं। मथुरा को शिल्प सामग्री में आयागपट (चित्र ३), जिन मूर्तियां, सर्वतोभद्रिका प्रतिमा (चित्र ६६), जिनों के जीवन से सम्बन्धित दृश्य (चित्र १२, ३९) एवं कुछ अन्य मूर्तियां प्रमुख हैं।
आयागपट-आयागपट मथुरा की प्राचीनतम जैन शिल्प सामग्री है । इनका निर्माण शुंग-कुषाण युग में प्रारम्भ हुआ। मथुरा के अतिरिक्त और कहीं से आयागपटों के उदाहरण नहीं मिले हैं। मथुरा में भी कुषाण युग के बाद इनका निर्माण बन्द हो गया। आयागपट वर्गाकार प्रस्तर पट्ट हैं जिन्हें लेखों में आयागपट या पूजाशिलापट कहा गया है । आयागपट जिनों (अर्हतों) के पूजन के लिए स्थापित किये गये थे। एक आयागपट के महावीर के पूजन के लिए स्थापित किये जाने का उल्लेख है। आयागपट उस संक्रमण काल की शिल्प सामग्री है जब उपास्य देवों का पूजन प्रतीक और मानवरूप में साथ-साथ हो रहा था। आयागपटों पर जैन प्रतीक या प्रतीकों के साथ जिन मूर्ति भी उत्कीर्ण है। आयागपटों की जिन मूर्तियां श्रीवत्स से युक्त और ध्यानमुद्रा में निरूपित हैं । एक उदाहरण (राज्य संग्रहालय, लखनऊ-जे २५३) में मध्य में सप्त सर्पफणों के छत्र से युक्त पाश्वनाथ हैं।
मथुरा से कम से कम १० आयागपट मिले हैं (चित्र ३)। इनमें अमोहिनि (राज्य संग्रहालय, लखनऊ-जे १) एवं स्तूप (राज्य संग्रहालय, लखनऊ-जे २५५) का चित्रण करने वाले पट प्राचीनतम हैं। दो आयागपटों पर स्तूप एवं अन्य पर पद्म, धर्मचक्र, स्वस्तिक, श्रीवत्स, त्रिरत्न, मत्स्ययुगल, वैजयन्ती, मंगलकलश, भद्रासन, रत्नपात्र, देवगृह जैसे मांगलिक चिह्न उत्कीर्ण हैं।
अमोहिनि द्वारा स्थापित आर्यवती पट' पर आर्यवती देवी (?) निरूपित है। लेख में 'नमो अर्हतो वर्धमानस' उत्कीर्ण है । छत्र से शोभित आर्यवती देवी की वाम भुजा कटि पर है और दक्षिण अभयमुद्रा में है। यू०पी० शाह ने लेख में आये वर्धमान नाम के आधार पर आकृति की पहचान वर्धमान को माता से की है। आर्यवती की पहचान कल्पसूत्र की आय यक्षिणी और भगवतीसत्र की अज्जा या आर्या देवी से भी की जा सकती है। हरिवंशपुराण में महाविद्याओं की सूची में भी आर्यवती का नामोल्लेख है।ल्यूजे-डे-ल्यू ने आर्यवती शब्द को आयागपट का समानार्थी माना है ।१४
जिन मूर्तियां-मथुरा की कुषाण कला में जिनों को चार प्रकार से अभिव्यक्ति मिली है। ये अंकन आयागपटों पर ध्यान-मुद्रा में, जिन चौमुखी (सर्वतोभद्रिका) मूर्तियों में कायोत्सर्ग-मुद्रा में१५, स्वतन्त्र मूर्तियों के रूप में, और जीवन-दृश्यों
१ स्ट००आ०, पृ० ९ २ मथुरा की जैन मूर्तियों का अधिकांश भाग राज्य संग्रहालय, लखनऊ एवं पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा में सुरक्षित है। ३ एपि० इण्डि०, खं० २, पृ० ३१४
४ स्मिथ, वी० ए०, पू०नि०, पृ० १५, फलक ८ । ५ शर्मा, आर०सी०, 'प्रि-कनिष्क बुद्धिस्ट आइकानोग्राफी ऐट मथुरा', आर्किअलाजिकल कांग्रेस ऐण्ड सेमिनार पेपर्स, __नागपुर, १९७२, पृ० १९३-९४ ६ मथुरा से प्राप्त तीन आयागपट क्रमशः पटना संग्रहालय, राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली एवं बुडापेस्ट (हंगरी) संग्रहालय
में सुरक्षित हैं । अन्य आयागपट पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा एवं राज्य संग्रहालय, लखनऊ में हैं। ७ स्मिथ, वी०ए०, पू०नि०, पृ० १९, २१ ८ पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा-क्यू २; राज्य संग्रहालय, लखनऊ-जे २५५ ९ ल्यूजे-डे-ल्यू, जे०ई० वान, दि सीथियन पिरियड, लिडेन, १९४९, पृ० १४७; स्मिथ, वी०ए०, पू०नि०, पृ० २१,
फलक १४; एपि०इण्डि०, खं० २, पृ० १९९, लेख सं० २ १० स्ट००आ०, पृ० ७९ ।
११ कल्पसूत्र १६६
१२ भगवतीसूत्र ३.१.१३४ १३ हरिवंशपुराण २२.६१-६६
१४ ल्यूजे-डे-ल्यू, जे०ई०वान, पू०नि०, पृ० १४७ १५ जिन चौमुखी के १० से अधिक उदाहरण राज्य संग्रहालय, लखनऊ और पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा में हैं
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