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________________ राजनीतिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि ] जैन धर्म में मूर्ति पूजन की प्राचीनता से सम्बद्ध सबसे महत्वपूर्ण वह उल्लेख है जिसमें महावीर के जीवनकाल में ही उनकी मूर्ति के निर्माण का उल्लेख है। साहित्यिक परम्परा से ज्ञात होता है कि महावीर के जीवनकाल में ही उनकी चन्दन की एक प्रतिमा का निर्माण किया गया था। इस मूर्ति में महावीर को दीक्षा लेने के लगभग एक वर्ष पूर्व राजकुमार के रूप में अपने महल में ही तपस्या करते हुए अंकित किया गया है । चूँकि यह प्रतिमा महावीर के जीवनकाल में ही निर्मित हुई, अतः उसे जीवन्तस्वामी या जीवितस्वामी संज्ञा दी गई । साहित्य और शिल्प दोनों ही में जीवन्तस्वामी को मुकुट, मेखला आदि अलंकरणों से युक्त एक राजकुमार के रूप में निरूपित किया गया है। महावीर के समय के बाद की भी ऐसी मूर्तियों के लिए जीवन्तस्वामी शब्द का ही प्रयोग होता रहा ।। जीवन्तस्वामी मूर्तियों को सर्वप्रथम प्रकाश में लाने का श्रेय यू० पी० शाह को है।' साहित्यिक परम्परा को विश्वसनीय मानते हुए शाह ने महावीर के जीवनकाल से ही जीवन्तस्वामी मूर्ति की परम्परा को स्वीकार किया है। उन्होंने साहित्यिक परम्परा की पुष्टि में अकोटा (गुजरात) से प्राप्त जीवन्तस्वामी की दो गुप्तयुगीन कांस्य प्रतिमाओं का भी उल्लेख किया है। इन प्रतिमाओं में जीवन्तस्वामी को कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़ा और वस्त्राभूषणों से सज्जित दरशाया गया है । पहली मूर्ति ल० पांचवीं शती ई० की है और दूसरी लेखयुक्त मूति ल० छठी शती ई० की है। दूसरी मूर्ति के लेख में 'जिवंतसामी' खुदा है। जैन धर्म में मूर्ति-निर्माण एवं पूजन की प्राचीनता के निर्धारण के लिए जोवन्तस्वामी मूर्ति की परम्परा की प्राचीनता का निर्धारण अपेक्षित है। आगम साहित्य एवं कल्पसूत्र जैसे प्रारम्भिक ग्रन्थों में जीवन्तस्वामी मूर्ति का उल्लेख नहीं प्राप्त होता है। जीवन्तस्वामी मूर्ति के प्राचीनतम उल्लेख आगम ग्रन्थों से सम्बन्धित छठी शती ई० के बाद की उत्तरकालीन रचनाओं, यथा-नियुक्तियों, टीकाओं, भाष्यों, चूणियों आदि में ही प्राप्त होते हैं । इन ग्रन्थों से कोशल, उज्जैन, दशपुर (मंदसोर), विदिशा, पुरी, एवं वीतभयपट्टन में जीवन्तस्वामी मूर्तियों की विद्यमानता की सूचना प्राप्त होती है। जीवन्तस्वामी मूर्ति का उल्लेख सर्वप्रथम वाचक संघदासगणि कृत वसुदेवहिन्डी (६१० ई० या ल० एक या दो शताब्दी पूर्व की कृति) में प्राप्त होता है। ग्रन्थ में आर्या सुव्रता नाम की एक गणिनी के जीवन्तस्वामी मूर्ति के पुजनार्थ उज्जैन जाने का उल्लेख है। जिनदासकृत आवश्यक चूणि (६७६ ई०) में जीवन्तस्वामी की प्रथम मूर्ति की कथा प्राप्त होती है। इसमें अच्यत इन्द्र द्वारा पूर्वजन्म के मित्र विद्युन्माली को महावीर की मूर्ति के पूजन को सलाह देने, विद्युन्माली के गोशीर्ष चन्दन की मूर्ति बनाने एवं प्रतिष्ठा करने, विद्युन्माली के पास से मूर्ति के एक वणिक के हाथ लगने, कालान्तर में महावीर के समकालीन सिन्धु सौवीर में वीतभयपत्तन के शासक उदायन एवं उसकी रानी प्रभावती द्वारा उसी मति के १ शाह, यू० पी०, 'ए यूनीक जैन इमेज आव जीवन्तस्वामी, ज०ओ०ई०, खं० १, अं० १, पृ० ७२-७९; शाह, 'साइड लाइट्स ऑन दि लाइफ-टाइम सेण्डलवुड इभेज ऑव महावीर', ज०ओ०ई०, खं० १, अं० ४, पृ० ३५८६८; शाह, 'श्रीजीवन्तस्वामी' (गुजराती), जै०स०प्र०, वर्ष १७, अं०५-६, पृ०९८-१०९; शाह, अकोटा ब्रोन्जेज, बंबई, १९५९, पृ० २६-२८ २ शाह, 'श्रीजीवन्तस्वामी,' जै०स०प्र०, वर्ष १७, अं० ५-६, पृ० १०४ ३ शाह, 'ए यूनीक जैन इमेज़ ऑव जोवन्तस्वामी,' ज०ओ०६०, खं० १, अं० १, पृ० ७९ ४ शाह, यू० पी०, अकोटा बोन्जेज, पृ० २६-२८, फलक ९ ए, बी, १२ ए ५ जैन, हीरालाल, भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, भोपाल, १९६२, पृ० ७२ ६ जैन, जे० सी०, लाईफ इन ऐन्शण्ट इण्डिया : ऐज डेपिक्टेड इन दि जैन केनन्स, बंबई, १९४७, पृ० २५२, ३००, ३२५ . ७ शाह, यू० पी०, 'श्रीजीवन्तस्वामी,' जै०स०प्र०, वर्ष १७, अं० ५-६, पृ० ९८ ८ वसुदेवहिण्डी, खं० १, भाग १, पृ० ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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