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________________ प्रस्तावना ] आर० सी० अग्रवाल ने जैन प्रतिमाविज्ञान के विभिन्न पक्षों पर कई लेख लिखे हैं। इनमें जैन देवी सच्चिका के प्रतिमा लक्षण से सम्बन्धित लेख महत्वपूर्ण है।' लेख में सच्चिका देवी पर हिन्दू महिषमर्दिनी का प्रभाव आकलित किया गया है। एक अन्य महत्वपूर्ण लेख में अग्रवाल ने विदिशा की तीन गुप्तकालीन जिन मूर्तियों का उल्लेख किया है। दो मूर्तियों के लेखों में क्रमश: पुष्पदन्त एवं चन्द्रप्रभ के नाम हैं। ये मूर्तियां गुप्तकाल में कुषाणकाल की मूर्ति लेखों में जिनों के नामोल्लेख की परम्परा की अनवरतता की साक्षी हैं। कुछ अन्य लेखों में अग्रवाल ने राजस्थान के विभिन्न स्थलों की कुबेर, अम्बिका एवं जीवन्तस्वामी महावीर मूर्तियों के उल्लेख किये हैं। क्लाज ब्रुन ने जैन शिल्प पर चार लेख एवं एक पुस्तक लिखी है । एक लेख खजुराहो के पार्श्वनाथ मन्दिर की बाह्य भित्ति की मूर्तियों से सम्बन्धित है। लेख में भित्ति की मूर्तियों पर हिन्दू प्रभाव की सीमा निर्धारित करने का सराहनीय प्रयास किया गया है। पर किन्हीं मूर्तियों के पहचान में लेखक ने कुछ भूलें की हैं, जैसे उत्तर मित्ति की रामसीता मूर्ति को कुमार की मूर्ति से पहचाना गया है। एक लेख महावीर के प्रतिमानिरूपण से सम्बन्धित है। दो अन्य में ब्रन ने दुदही एवं चाँदपुर की जैन मूर्तियों का उल्लेख किया है। ब्रुन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य देवगढ़ की जिन मूर्तियों पर उनको पुस्तक है। ब्रुन ने देवगढ़ की जिन मूर्तियों को कई वर्गों में विभाजित किया है, पर यह विभाजन प्रतिमा लाक्षणिक आधार पर नहीं किया गया है, जिसकी वजह से देवगढ़ की जिन मूर्तियों के प्रतिमा लाक्षणिक अध्ययन की दृष्टि से यह पुस्तक बहुत उपयोगी नहीं है । जिन मूर्तियों में लांछनों, अष्ट-प्रातिहार्यों एवं यक्ष-यक्षी युगलों के महत्व को नहीं आकलित किया गया है। जिन मूर्तियों के कुछ विशिष्ट प्रकारों (द्वितीर्थी, त्रितीर्थी, चौमुख) एवं बाहुबली, भरत चक्रवर्ती, क्षेत्रपाल, कुबेर, सरस्वती आदि की मूर्तियों के भी उल्लेख नहीं हैं। पुस्तक में मन्दिर १२ की भित्ति की २४ यक्षी मूर्तियों के विस्तृत उल्लेख हैं, जो जैन मूर्तिविज्ञान के अध्ययन को दृष्टि से पुस्तक को सर्वाधिक महत्वपूर्ण सामग्री है । ब्रुन ने इन यक्षियो में से कुछ पर श्वेताम्बर महाविद्याओं के प्रभाव को भी स्पष्ट किया है। उपर्युक्त महत्वपूर्ण कार्यों के अतिरिक्त १९४५ से १९७९ के मध्य अन्य कई विद्वानों ने भी जैन प्रतिमाविज्ञान या सम्बन्धित पक्षों पर विभिन्न लेख लिखे हैं। इनमें विभिन्न पुरातात्विक स्थलों एवं संग्रहालयों से सम्बन्धित लेख भी हैं। १ अग्रवाल, आर०सी०, 'आइकानोग्राफी ऑव दि जैन गाडेस सच्चिका', जैन एण्टि०, खं०२१, अं० १, पृ० १३-२० २ अग्रवाल, आर० सी०, 'न्यूली डिस्कवर्ड स्कल्पचर्स फ्राम विदिशा', ज०ओ०ई०, खं० १८, अं० ३, पृ० २५२-५३ ३ अग्रवाल, आर० सी०, सम इण्टरेस्टिग स्कल्पचर्स ऑव दि जैन गाडेस अम्बिका फ्राम मारवाड़', इंहि०क्वा०, खं०३२, अं०४, पृ० ४३४-३८; सम इन्टरेस्टिंग स्कल्पचर्स ऑव यक्षज ऐण्ड कुबेर फाम राजस्थान', इंहि०क्वा०. खं० ३३, अं०३, पृ० २००-०७; 'ऐन इमेज ऑव जीवन्तस्वामी फ्राम राजस्थान', अ०ला०ब०. खं० २२. भाग १-२, पृ० ३२-३४; 'गाडेस अम्बिका इन दि स्कल्पचर्स ऑव राजस्थान', क्वाजमिसो०, खं०४९, अं०२. पृ० ८७-९१ ४ ब्रुन, क्लाज, 'दि फिगर ऑव दि टू लोअर रिलीफ्स ऑन दि पार्श्वनाथ टेम्पल ऐट खजुराहो', आचार्य श्रीविजय वल्लभ सूरि स्मारक ग्रन्थ, बम्बई, १९५६, पृ० ७-३५ ५ ब्रुन, क्लाज, 'आइकानोग्राफी ऑव दि लास्ट तीर्थंकर महावीर', जैनयुग, वर्ष १, अप्रैल १९५८, पृ० ३६-३७ ६ ब्रन, क्लाज, 'जैन तीर्थज इन मध्यदेश : दुदही', जनयुग, वर्ष १, नवम्बर १९५८, पृ० २९-३३: 'जैन तीर्थज इन मध्यदेश : चाँदपुर', जैनयुग, वर्ष २, अप्रैल १९५९, पृ० ६७-७० ७ ब्रुन, क्लाज, दि जिन इमेजेज ऑव देवगढ़, लिडेन, १९६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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