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________________ २४४ [जैन प्रतिमाविज्ञान (२४) सिद्धायिका (या सिद्धायिनी) यक्षी शास्त्रीय परम्परा सिद्धायिका (या सिद्धायिनी) जिन महावीर की यक्षी है। सिद्धायिका जैन देवकुल की चार प्रमुख यक्षियों (चक्रेश्वरी, अम्बिका, पद्मावती, सिद्धायिका) में एक है।' श्वेतांबर परम्परा में चतुर्भुजा यक्षी का वाहन सिंह (या गज) और दिगंबर परम्परा में द्विभुजा यक्षी का वाहन सिंह (या भद्रासन) बताया गया है। श्वेतांबर परम्परा-निर्वाणकलिका में सिंहवाहना सिद्धायिका के दक्षिण करों में पुस्तक एवं अभयमुद्रा और वाम में मालिंग एवं बाण उल्लिखित हैं। कुछ ग्रन्थों में बाण के स्थान पर वीणा का उल्लेख है । पद्मानन्दमहाकाव्य में । को गजवाहना बताया गया है। आचारदिनकर में बायें हाथों में मातुलिंग एवं वीणा (या बाण) के स्थान पर पाश एवं पद्म के प्रदर्शन का निर्देश है।५ मन्त्राधिराजकल्प में सिद्धायिका के षडभुज रूप का ध्यान किया गया है। ग्रन्थ के अनुसार यक्षा करों में पुस्तक, अभयमुद्रा, वरदमुद्रा, खरायुध, वीणा एवं फल धारण किये है। दिगंबर परम्परा–प्रतिष्ठासारसंग्रह में भद्रासन पर विराजमान द्विभुजा सिद्धायिनी के करों में वरदमुद्रा और पुस्तक का वर्णन है। प्रतिष्ठासारोद्धार में भद्रासन पर विराजमान यक्षी का वाहन सिंह बताया गया है। अपराजितपुच्छा में वरदमुद्रा के स्थान पर अभयमुद्रा का उल्लेख है। दिगंबर परम्परा के एक तान्त्रिक ग्रन्थ विद्यानुशासन में उल्लेख है १ रूपमण्डन ६.२५-२६ २१सिद्धायिका हरितवर्णा सिंहवाहनां चतुर्भुजां पुस्तकाभययुक्तदक्षिणकरां मातुलिंगबाणान्वितवामहस्तां चेति । निर्वाणकलिका १८.२४; द्रष्टव्य, देवतामूर्तिप्रकरण ७.६५; रूपमण्डन ६.२३ ३ समातुलिंगवल्लक्यौ वामबाहू च विभ्रती । पुस्तकाभयदौ चोमो दधाना दक्षिणीभुजौ ॥ त्रिश०पु०च० १०.५.१२-१३ द्रष्टव्य, प्रवचनसारोद्धार २४, पृ० ९४; पद्मानन्दमहाकाव्यः परिशिष्ट-महावीर २४८-४९ । देवतामूर्तिप्रकरण में बाण का ही उल्लेख है। ४ पद्मानन्दमहाकाव्यः परिशिष्ट-महावीर २४८-४९ ५ ""पाशाम्भोरुहराजिवामकरमाग सिद्धायिका" । आचारदिनकर ३४, पृ० १७८ ६ सिद्धाथिका नवतमालदलालिनीलरुक पुस्तिकाभयकरा (दा) नखरायुधांका । वीणाफलाङ्कितभुजद्वितया हि भव्यानव्याज्जिनेन्द्रपदपङ्कजबद्धभक्तिः ॥ मन्त्राधिराजकल्प ३.६६ ७ सिद्धायिनी तथा देवी द्विभुजा कनकप्रभा । वरदा पुस्तकं धत्ते सुभद्रासनमाश्रिता ॥ प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.७३-७४ ८ सिद्धायिका सप्तकरोछितांगजिनाश्रयांपुस्तकदानहस्ताम् । श्रितां सुभद्रासनमत्र यज्ञे हेमद्युति सिंहगति यजेहम् । प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१७८ द्रष्टव्य, प्रतिष्ठातिलकम् ७.२४, पृ० ३४८ ९ द्विभुजा कनकामा च पुस्तकं चाभयं तथा । सिद्धायिका तू कर्तव्या भद्रासनसमन्विता ।। अपराजितपृच्छा २२१.३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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