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________________ यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान ] २४१ २ फल, अंकुश, पाश एवं पद्म प्रदर्शित हैं । यक्षी का वाहन हंस है ।' बादामी की गुफा ५ की दीवार की मूर्ति में चतुर्भुजा पद्मावती (?) का वाहन सम्भवत: हंस ( या क्रौंच ) है । यक्षी के करों में अभयमुद्रा, अंकुश, पाश एवं फल हैं । कलुगुमलाई (तमिलनाडु) से भी चतुर्भुजा पद्मावती की एक मूर्ति (१०वीं - ११वीं शती ई०) मिली है । इसमें सर्पफणों के छत्र से युक्त यक्षी के करों में फल, सर्पं, अंकुश एवं पाश प्रदर्शित हैं । 3 कर्नाटक से मिली पद्मावती की तीन चतुर्भुजी मूर्तियां प्रिंस ऑ वेल्स संग्रहालय, बम्बई में सुरक्षित हैं। तीनों ही उदाहरणों में एक सर्पंफण से शोभित पद्मावती ललितमुद्रा में विराजमान है । पहली मूर्ति में यक्षी की तीन अवशिष्ट भुजाओं में पद्म, पाश एवं अंकुश हैं । दूसरी मूर्ति की एक अवशिष्ट भुजा में अंकुश है । तीसरी मूर्ति में आसन के नीचे सम्भवत: कुक्कुट ( या शुक) उत्कीर्ण है । यक्षी वरदमुद्रा, अंकुश, पाश एवं सर्प युक्त है। उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि दक्षिण भारत में पद्मावती के साथ पाश, अंकुश एवं पद्म का प्रदर्शन लोकप्रिय था । शीर्षभाग में सर्पफणों के छत्र एवं वाहन के रूप में कुक्कुट - सर्प ( या कुक्कुट) का अंकन विशेष लोकप्रिय नहीं था । कुछ में हंसवाहन भी उत्कीर्ण है । विश्लेषण विभिन्न क्षेत्रों की मूर्तियों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि अम्बिका एवं चक्रेश्वरी के बाद उत्तर भारत में पद्मावती की ही सर्वाधिक मूर्तियां उत्कीर्णं हुईं। पद्मावती की स्वतन्त्र मूर्तियों का निरूपण ल० नवीं शती ई० में और जिन-संयुक्त मूर्तियों का चित्रण ल० दसवी शती ई० में आरम्भ हुआ । पद्मावती के साथ वाहन (कुक्कुट-सर्प) और हाथ में सर्प का प्रदर्शन ल० नवीं शती ई० में ही प्रारम्भ हो गया । दसवीं शती ई० तक यक्षी का द्विभुज रूप में निरूपण ही लोकप्रिय था । ग्यारहवीं शती ई० में यक्षी के चतुर्भुज रूप का निरूपण भी प्रारम्भ हुआ। जिन संयुक्त मूर्तियों में पद्मावती केवल द्विभुजा और चतुर्भुजा है, पर स्वतन्त्र मूर्तियों में द्विभुज और चतुर्भुज के साथ-साथ पद्मावती का द्वादशभुज रूप भी मिलता है । जिन-संयुक्त मूर्तियों में पद्मावती के साथ वाहन एवं विशिष्ट आयुध (पद्म, सर्प, पाश, अंकुश ) केवल कुछ ही उदाहरणों में प्रदर्शित हैं । दिगंबर स्थलों पर पार्श्वनाथ के साथ या तो पद्मावती' या फिर सामान्य लक्षणों वाली यक्षी निरूपित है । पर श्वेतांबर स्थलों पर दो उदाहरणों के अतिरिक्त अन्य सभी में यक्षी के रूप में अम्बिका आमूर्तित है । विमलवसही (देवकुलिका ४ ) एवं ओसिया ( महावीर मन्दिर का बलानक) की दो श्वेतांबर मूर्तियों में सर्पफणों के छत्रों वाली पारम्परिक यक्षी निरूपित है । श्वेतांबर स्थलों पर पद्मावती की केवल द्विभुजी एवं चतुर्भुजी मूर्तियां उत्कीर्ण हुईं पर दिगंबर स्थलों पर द्विभुजी एवं चतुर्भुजी के साथ ही द्वादशभुजी मूर्तियां भी बनीं। श्वेतांबर स्थलों पर दिगंबर स्थलों की अपेक्षा वाहन एवं मुख्य आयुधों (पद्म, पाश, अंकुश ) के सन्दर्भ में परम्परा का अधिक पालन किया गया है । तीन, पांच या सात सर्पफणों से शोभित यक्षी के साथ वाहन सामान्यतः कुक्कुट सर्प (या कुक्कुट) है ।" दिगंबर स्थलों पर परम्परा के अनुरूप यक्षी के दो हाथों में पद्म का प्रदर्शन विशेष लोकप्रिय था । १ अन्निगेरी, ए० एम० पू०नि०, पृ० १९, २९ २ संकलिया, एच० डी० पू०नि०, पृ० १६१ ३ देसाई, पी० बी० पू०नि०, पृ० ६५ " ५ ओसिया के महावीर मन्दिर की मूर्ति में ये विशेषताएं प्रदर्शित हैं । ६ केवल देवगढ़ ( मन्दिर १२ ) की ही मूर्ति में पद्मावती चतुर्भुजा है । ४ संकलिया, एच० डी० पू०नि०, पृ० १५८-५९ ७ ग्रन्थ में पद्मावती की भुजा में सर्प के प्रदर्शन के अनुल्लेख के बाद भी मूर्तियों में सर्प का चित्रण लोकप्रिय था । ८ पद्मावती के साथ वाहन एवं अन्य पारम्परिक विशेषताएं सामान्यतः नहीं प्रदर्शित हैं । ९ खजुराहो ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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