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[जैन प्रतिमाविज्ञान
ग्यारहवीं शती ई० की एक चतुर्भुज पद्मावती मूर्ति (?) ब्रिटिश संग्रहालय, लन्दन में है।' तीन सर्पफणों के छत्र वाली पद्मावती के हाथों में खड्ग, सर्प, खेटक और पद्म हैं । शीर्षभाग में छोटी जिन मूर्ति और चरणों के समीप सर्पवाहन तथा दो सेविकाएं प्रदर्शित हैं।
। (ख) जिन-संयुक्त मूर्तियां-पावं (या धरण) यक्ष की मूर्तियों के अध्ययन के सन्दर्भ में हम पहले ही उल्लेख कर चुके हैं कि पार्श्वनाथ की मूर्तियों में यक्ष-यक्षी का अंकन नियमित नहीं था। अधिकांश उदाहरणों में यक्षी के स्थान पर पाश्वनाथ के समीप सर्पफणों के छत्र से युक्त एक स्त्री आकृति (पद्मावती) उत्कीर्ण है जिसके हाथ में लम्बा छत्र है। पार्श्वनाथ की मूर्तियों में यक्षी सामान्यतः द्विभुजा और सामान्य लक्षणों वाली है। ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० की कुछ मूर्तियों में चतुर्भुजा यक्षी भी निरूपित है । जिन-संयुक्त मूर्तियों में पद्मावती के साथ वाहन नहीं उत्कीर्ण है । चतुर्भुज मूर्तियों में शीर्षभाग में सर्पफणों के छत्र और हाथ में पद्म प्रदर्शित हैं। यक्षी के साथ अन्य पारम्परिक आयुध (पाश एवं अंकुश) नहीं प्रदर्शित हैं।
जिन-संयुक्त मूर्तियों में सामान्य लक्षणों वाली द्विभुजा यक्षी के करों में अभयमुद्रा (या वरदमुद्रा या पद्म) एवं फल (या कलश) प्रदर्शित हैं। खजुराहो एवं देवगढ़ की कुछ मूर्तियों में सामान्य लक्षणों वाली यक्षी के मस्तक पर सपंफणों के छत्र भी देखे जा सकते हैं। राज्य संग्रहालय, लखनऊ की पार्श्वनाथ की एक मूर्ति (जे ७९४, ११ वीं शती ई०) में पीठिका के मध्य में पांच सपंफणों के छत्र वाली चतुर्भुजा पद्मावती निरूपित है। यक्षी के हाथों में अभयमुद्रा, पद्म, पद्म एवं कलश हैं। देवगढ़ के मन्दिर १२ के समीप की एक अरक्षित मूर्ति (११ वीं शती ई०) में तीन सर्पफणों के छत्र से यक्त चतुर्भुजा यक्षी के दो ही हाथों के आयुध-अभयमुद्रा एवं कलश-स्पष्ट हैं। खजुराहो के स्थानीय संग्रहालय की दो मूर्तियों (११ वीं शती ई०) में यक्षी चतुर्भुजा है। एक उदाहरण के १००) में सर्पफणों से युक्त यक्षी के दो अवशिष्ट हाथों में अभयमुद्रा और पद्य हैं। दूसरी मूर्ति (के ६८) में पांच सर्पफणों के छत्रवाली यक्षी ध्यानमुद्रा में विराजमान है और उसके तीन सुरक्षित हाथों में अभयमुद्रा, सर्प एवं जलपात्र प्रदर्शित हैं।
बिहार-उड़ीसा-बंगाल-ल० नवीं-दसवीं शती ई० की एक पद्मावती मूर्ति (?) नालन्दा (मठ संख्या ९) से मिली है और सम्प्रति नालन्दा संग्रहालय में सुरक्षित है। ललितमुद्रा में पद्म पर विराजमान चतुर्भुजा देवी के मस्तक पर पांच सर्पफणों का छत्र और करों में फल, खड्ग, परशु एवं चिनमुद्रा-पद्म प्रदर्शित हैं। उड़ीसा के नवमुनि एवं बारभूजी गुफाओं (११वीं-१२वीं शती ई०) में पद्मावती की दो मूर्तियां हैं। नवमुनि गुफा की मूर्ति में द्विभुजा यक्षी ललितमुद्रा में पद्म पर विराजमान है । जटामुकुट से शोभित यक्षी त्रिनेत्र है और उसके हाथों में अभयमुद्रा एवं पद्म प्रदर्शित हैं । यक्षी का निरूपण अपारम्परिक है। आसन के नीचे सम्भवतः कुक्कुट-सर्प उत्कीर्ण है। बारभुजी गुफा की मूर्ति में पांच सर्पफणों के छत्र से यक्त पद्मावती अष्टभुजा है। पद्म पर विराजमान यक्षी के दक्षिण करों में वरदमुद्रा, बाण, खड्ग, चक्र (?) एवं वाम में धनुष, खेटक, सनालपद्म, सनालपद्म प्रदर्शित हैं। यक्षी की मुख्य विशेषताएं (पद्मवाहन, सर्पफणों का छत्र एवं हाथ में पद्म) परम्परासम्मत हैं।
दक्षिण भारत-पद्मावती दक्षिण भारत की तीन सर्वाधिक लोकप्रिय यक्षियों (अम्बिका, पद्मावती एवं ज्वालामालिनी) में एक है । कर्नाटक में पद्मावती सर्वाधिक लोकप्रिय थी। कन्नड़ शोध संस्थान संग्रहालय की पार्श्वनाथ की मूर्ति में चतुर्भुजा पद्मावती पद्म, पाश, गदा (या अंकुश) एवं फल से युक्त है। संग्रहालय में चतुर्भुजा पद्मावती की ललितमुद्रा में आसीन दो स्वतन्त्र मतियां भी सुरक्षित हैं । एक में (एम ८४) सर्पफण से मण्डित यक्षी का वाहन कुक्कुट-सर्प है। यक्षी के दो अवशिष्ट हाथों में पाश एवं फल हैं। दूसरी मूर्ति में पद्मावती पांच सर्पफणों के छत्र से शोभित है और उसके हाथों में
१०क०स्था, खं० ३, पृ० ५५३ ३ मित्रा, देबला, पू०नि०, पृ० १२९ ५ देसाई, पी० बी०, पू०नि०, पृ० १०, १६३
२ स्ट०जै०आ०, पृ० १७ ४ वही, पृ० १३३
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