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यक्ष यक्षी - प्रतिमाविज्ञान ]
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दक्षिण भारतीय परम्परा - दिगंबर ग्रन्थ में पांच सर्पफणों के छत्र से शोभित चतुर्भुजा पद्मावती का वाहन हंस है । यक्षी के ऊपरी हाथों में कुठार एवं कुलिश और निचले में अभय एवं कटक मुद्राएं वर्णित हैं ।' भैरव - पद्मावती कल्प में पद्म पर अवस्थित चतुर्भुजा पद्मा को त्रिनेत्र और हाथों में पाश, फल, वरदमुद्रा एवं शृणि से युक्त कहा गया है । पद्मावती को त्रिपुरा एवं त्रिपुरभैरवी जैसे नामों से भी सम्बोधित किया गया है । अज्ञातनाम श्वेतांबर ग्रन्थ में कुक्कुट - सर्प पर आरूढ़ चतुर्भुजा यक्षी को त्रिलोचना बताया गया है और उसके हाथों में श्रृणि, पाश, वरदमुद्रा एवं पद्म का उल्लेख है । यक्ष-यक्षी-लक्षण में सपंफण से आच्छादित चतुर्भुजा एवं त्रिलोचना यक्षी का वाहन सर्प तथा करों के आयुध पाश, अंकुश, फल एवं वरदमुद्रा हैं । श्वेतांबर ग्रन्थों के विवरण सामान्यतः उत्तर भारतीय श्वेतांबर परम्परा के विवरण से मेल खाते हैं ।
मूर्ति - परम्परा
पद्मावती की प्राचीनतम मूर्तियां नवीं दसवीं शती ई० की हैं। ये मूर्तियां ओसिया के महावीर एवं ग्यारसपुर के मालादेवी मन्दिरों से मिली हैं। इनमें पद्मावतो द्विभुजा है। सभी क्षेत्रों की मूर्तियों में सपंफणों के छत्र से युक्त पद्मावती का वाहन सामान्यतः कुक्कुट सर्प ( या कुक्कुट ) " है और उसके करों में सर्प, पाश, अंकुश एवं पद्म प्रदर्शित हैं ।
गुजरात - राजस्थान ( क ) स्वतन्त्र मूर्तियां - इस क्षेत्र में ल० नवीं शती ई० में पद्मावती की स्वतन्त्र मूर्तियों का उत्कीर्णन प्रारम्भ हुआ । इस क्षेत्र की स्वतन्त्र मूर्तियां (९वीं - १३वीं शती ई० ) ओसिया ( महावीर मन्दिर), झालावाड़ ( झालरापाटन), कुम्भारिया (नेमिनाथ मन्दिर), और आबू (विमलवसही एवं लूणवसही) से मिली हैं। ओसिया के महावीर मन्दिर की मूर्ति उत्तर भारत में पद्मावती की प्राचीनतम मूर्ति है जो मन्दिर के मुखमण्डप के उत्तरी छज्जे पर उत्कीर्ण है । कुक्कुटसर्प पर विराजमान द्विभुजा पद्मावती के दाहिने हाथ में सर्प और बायें में फल हैं। अष्टभुजा पद्मावती की एक मूर्ति झालरापाटन (झालावाड़, राजस्थान) के जैन मन्दिर (१०४३ ई०) के दक्षिणी अधिष्ठान पर है । ललितमुद्रा में विराजमान यक्षी के मस्तक पर सात सर्प फणों का छत्र और करों में वरदमुद्रा, वस्त्र, पद्मकलिका, कृपाण, खेटक, पद्म-कलिका, घण्टा एवं फल प्रदर्शित हैं ।
बारहवीं शती ई० की दो चतुर्भुज मूर्तियां कुम्भारिया के नेमिनाथ मन्दिर की पश्चिमी देवकुलिका की बाह्य मिति पर हैं ( चित्र ५६ ) । दोनों उदाहरणों में पद्मावती ललितमुद्रा में मद्रासन पर विराजमान है और उसके आसन के समक्ष कुक्कुट सर्प उत्कीर्ण है। एक मूर्ति में यक्षी के मस्तक पर पांच सर्पफणों का छत्र भी प्रदर्शित है । हाथों में वरदाक्ष, अंकुश, पाश एवं फल हैं। सर्पफण से रहित दूसरी मूर्ति में यक्षी के करों में पद्मकलिका, पाश, अंकुश एवं फल हैं । fans सही के गूढ़मण्डप के दक्षिणी द्वार पर भी चतुर्भुजा पद्मावती की एक मूर्ति (१२ वीं शती ई०) उत्कीर्ण है जिसमें कुक्कुट सर्प पर आरूढ़ पद्मावती सनालपद्म, पाश, अंकुश (?) एवं फल से युक्त है । उपर्युक्त तीनों ही मूर्तियों के निरूपण में
१ रामचन्द्रन, टी० एन० पू०नि०, पृ० २१०
२ पाशफलवरदगजवशकरणकरा पद्मविष्टरा पद्मा ।
सा मां रक्षतु देवी त्रिलोचना रक्तपुष्पाभा ॥
तोतला त्वरिता नित्या त्रिपुरा कामसाधिनी ।
दिव्या नामानि पद्मायास्तथा त्रिपुरभैरवी ॥ भैरवपद्मावतीकल्प (बीपार्णव से उद्धृत, पृ० ४३९)
३ रामचन्द्रन, टी० एन० पू०नि०, पृ० २१०
४ पद्मावती की बहुभुजी मूर्तियां देवगढ़, शहडोल, बारभुजी गुफा एवं झालरापाटन से मिली हैं ।
५ कभी-कभी यक्षी को सर्प, पद्म और मकर पर भी आरूढ़ दिखाया गया है ।
६ इस क्षेत्र में पद्मावती की स्वतन्त्र मूर्तियां केवल श्वेतांबर स्थलों से मिली हैं ।
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