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________________ २२८ [ जैन प्रतिमाविज्ञान . देवगढ़ कम देवगढ़ के मन्दिर ११ के सामने के मानस्तम्भ (१०५९ ई०) पर चतुर्भुजा अम्बिका की एक मूर्ति है । सिंहवाहना अम्बिका के करों में आम्रलुम्बि, अंकुश, पाश एवं पुत्र हैं ।' समान विवरणों वाली दूसरी चतुर्भुज मूर्ति मन्दिर १६ के स्तम्भ (१२वीं शती ई०) पर उत्कीर्ण है जिसमें वाहन नहीं है और ऊर्ध्व दक्षिण हाथ का आयुध भी अस्पष्ट है। ज्ञातव्य है कि अम्बिका का चतुर्भुज स्वरूप में निरूपण दिगंबर परम्परा के विरुद्ध है। उपयुक्त मूर्तियों में अम्बिका के करों में आम्रलुम्बि एवं पुत्र के साथ ही पाश और अंकुश का प्रदर्शन स्पष्टतः श्वेतांबर परम्परा से प्रभावित है। देवगढ़ के अतिरिक्त खजुराहो एवं राज्य संग्रहालय, लखनऊ की दो अन्य दिगंबर परम्परा की चतुर्भुज मूर्तियों (११वीं-१२वीं शती ई०) में भी यह श्वेतांबर प्रभाव देखा जा सकता है। खजुराहो के मन्दिर २७ की एक स्थानक मूर्ति (११वीं शती ई०) में सिंहवाहना अम्बिका के शीर्षभाग में आम्रफल के गुच्छक एवं जिन आकृति उत्कीर्ण हैं। अम्बिका के करों में आम्रलम्बि, अंकुश, पाश, एवं पुत्र दृष्टिगत होते हैं । चामरधर सेवकों एवं उपासकों से वेष्टित अम्बिका के दाहिने पार्श्व में दूसरा पुत्र भी आमूर्तित है । समान विवरणों वाली राज्य संग्रहालय, लखनऊ (६६.२२५) की एक मूर्ति में सिंहवाहना अम्बिका के एक हाथ में अंकुश के स्थान पर त्रिशलयुक्त-घण्टा है। ललितमुद्रा में विराजमान यक्षी के समीप ही उसका दूसरा पुत्र (निर्वस्त्र) भी खड़ा है। इस मूर्ति में भयानक दर्शन वाली अम्बिका के नेत्र बाहर की ओर निकले हैं। भयावह रूप में यह निरूपण सम्भवतः तान्त्रिक परम्परा से प्रभावित है। राज्य संग्रहालय, लखनऊ (जी ३१२) की ललितमुद्रा में आसीन एक अन्य चतुर्भुज मूर्ति (११वीं शती ई०) में अम्बिका के निचले हाथों में आम्रलुम्बि एवं पुत्र और ऊपरी हाथों में पद्म-पुस्तक एवं दर्पण हैं। सिंहवाहना अम्बिका के वाम पाश्वं में दूसरा पुत्र एवं शीर्षभाग में जिन आकृति एवं आभ्रफल के गुच्छक उत्कीर्ण हैं। जैन परम्परा के विपरीत अम्बिका के साथ पद्म और दर्पण का चित्रण हिन्द अम्बिका (पार्वती) का प्रभाव हो सकता है | हिन्दू अम्बिका (पार्वती) का प्रभाव हो सकता है। ज्ञातव्य है कि पद्म का चित्रण खजुराहो की चतुर्भुज अम्बिका की मूर्तियों में विशेष लोकप्रिय था। देवगढ़ के समान खजुराहो में भी जैन यक्षियों में अम्बिका की ही सर्वाधिक मूर्तियां हैं। खजुराहो में दसवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य की अम्बिका की ११ मूर्तियां हैं। पाश्वनाथ मन्दिर के एक उदाहरण के अतिरिक्त अन्य सभी में अम्बिका चतुर्भुजा है। ११ स्वतन्त्र मूर्तियों के अतिरिक्त ७ उत्तरंगों पर भी चतुर्भुजा अम्बिका की ललितमुद्रा में आसीन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । ११ स्वतन्त्र मूर्तियों में से दो पार्श्वनाथ और दो आदिनाथ मन्दिरों पर बनी हैं। अन्य उदाहरण स्थानीय संग्रहालयों एवं मन्दिरों में सुरक्षित हैं । सात उदाहरणों में अम्बिका त्रिभंग में खड़ी और शेष में ललितमुद्रा में आसीन हैं। सभी उदाहरणों में शीर्ष भाग में आम्रफल के गुच्छक, लघु जिन मूर्ति एवं सिंहवाहन उत्कीर्ण हैं। अम्बिका के निचले दो हाथों में आम्रलुम्बि एवं बालक और ऊपरी हाथों में पद्म (या पद्म में लिपटी पुस्तिका) प्रदर्शित हैं (चित्र ५७)। केवल मन्दिर २७ की एक मूर्ति में ऊर्ध्व करों में अंकुश एवं पाश हैं। इस अध्ययन से स्पष्ट है कि मुख्य आयुधों (आम्रलुम्बि एवं पुत्र) के सन्दर्भ में खजुराहो के कलाकारों ने परम्परा का पालन किया, पर ऊवं करों में पंच या पद्म-पुस्तिका का प्रदर्शन खजुराहो की अम्बिका मूर्तियों की स्थानीय विशेषता है। ग्यारहवीं शती ई० की चार १ पुत्र के बायें हाथ में आम्रफल है। २ खजुराहो की अन्य चतुर्भुज मूर्तियों में दो ऊर्व करों में अंकुश एवं पाश के स्थान पर पद्म (या पद्म में लिपटी पुस्तिका) प्रदर्शित हैं। ३ उत्तर भारत में अम्बिका की सर्वाधिक चतुर्भुज मूर्तियां खजुराहो से मिली हैं । ४ दो उदाहरणों (पुरातात्विक संग्रहालय, खजुराहो १६०८ एवं मन्दिर २७) में पुत्र गोद में बैठा न होकर वाम पार्श्व में खड़ा है। ५ स्थानीय संग्रहालय (के ४२) की एक मूर्ति में अम्बिका की एक ऊपरी भुजा में पद्म के स्थान पर आम्रलुम्बि है और जैन धर्मशाला के प्रवेश-द्वार के समीप के दो उत्तरंगों (११वीं शती ई०) की मूर्तियों में पुस्तक प्रदर्शित है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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