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________________ [ जैन प्रतिमाविज्ञान ग्यारहवीं शती ई० में अम्बिका की चतुर्भुज मूर्तियां भी उत्कीर्ण हुई । ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० की चतुर्भुज मूर्तियां कुम्भारिया, विमलवसही, जालोर एवं तारंगा से मिली हैं। आयुधों के आधार पर चतुर्भुजा अम्बिका की मूर्तियों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है । पहले वर्ग में ऐसी मूर्तियां हैं जिनमें देवी के तीन हाथों में आम्रलुम्बि और चौथे में पुत्र हैं ( चित्र ५४) । श्वेतांबर ग्रन्थों के निर्देशों के विरुद्ध अम्बिका के तीन हाथों में आम्रलुम्बि का प्रदर्शन सम्भवतः यक्षी के द्विभुज स्वरूप से प्रभावित है ।" दूसरे वर्ग की मूर्तियों में अम्बिका आम्रलुम्बि, पाश, चक्र (या वरदमुद्रा ) एवं पुत्र से युक्त है । कुम्भारिया के शान्तिनाथ मन्दिर की देवकुलिका ११ (१०८१ ई०) एवं १२ की दो जिन मूर्तियों में सिंहवाहना अम्बिका चतुर्भुजा है और उसके तीन करों में आम्रलुम्बि एवं चौथे में बालक हैं । 2 कुम्मारिया के नेमिनाथ मन्दिर (देवकुलिका ५ ) एवं विमलवसही के गूढमण्डप की रथिकाओं की जिन मूर्तियों (१२ वीं शती ई०) में भी समान लक्षणोंवाली चतुर्भुजा अम्बिका निरूपित है । ऐसी ही चतुर्भुजा अम्बिका की एक स्वतन्त्र मूर्ति विमलत्रसही के रंगमण्डप के दक्षिणीपश्चिमी वितान पर है जिसमें शीर्षभाग में आम्रफल के गुच्छक और पार्श्व में दूसरा पुत्र भी उत्कीर्ण है ( चित्र ५४ ) । २२६ चतुर्भुजा अम्बिका की दूसरे वर्ग की तीन मूर्तियां (१२ वीं शती ई०) क्रमशः तारंगा, जालोर एवं विमलवसही से मिली हैं । तारंगा के अजितनाथ मन्दिर की मूर्ति मूलप्रासाद की उत्तरी भित्ति पर उत्कीर्ण है । त्रिभंग में खड़ी अम्बिका के वाम पार्श्व में सिंह तथा करों में वरदमुद्रा, आम्रलुम्बि, पाश एवं पुत्र प्रदर्शित हैं । जालोर की मूर्ति महावीर मन्दिर के उत्तरी अधिष्ठान पर है । सिंहवाहना अम्बिका आम्रलुम्बि, चक्र, चक्र एवं पुत्र से युक्त है । 3 विमलवसही के गूढमण्डप के दक्षिणी प्रवेश द्वार पर उत्कीर्ण तीसरी मूर्ति में सिंहवाहना अम्बिका के हाथों में आम्रलुम्बि, पाश, चक्र एवं पुत्र हैं । उत्तरप्रदेश - मध्यप्रदेश – इस क्षेत्र में ल० सातवीं-आठवीं शती ई० में अम्बिका की जिन-संयुक्त और नवीं शती ई० में स्वतन्त्र मूर्तियों का उत्कीर्णन आरम्भ हुआ । सम्पूर्ण मूर्तियों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि अम्बिका के साथ पुत्र का अंकन सर्वप्रथम इसी क्षेत्र में प्रारम्भ हुआ । पुत्र का अंकन सातवीं-आठवीं शती ई० में और आम्रलुम्बि एवं सिंहवाहन का नवीं दसवीं शती ई० में प्रारम्भ हुआ (चित्र २६ ) | (क) स्वतन्त्र मूर्तियां - अम्बिका की प्रारम्भिकतम स्वतन्त्र मूर्ति देवगढ़ ( मन्दिर १२, ८६२ ई०) के यक्षी समूह में है । अरिष्टनेमि के साथ 'अम्बायिका' नाम को चतुर्भुजा यक्षी आमूर्तित है जो हाथों में पुष्प ( या फल), चामर, पद्म एवं पुत्र लिये है। वाहन अनुपस्थित है । अम्बिका के चतुर्भुजा होने के बाद भी पुत्र के अतिरिक्त इस मूर्ति में अन्य कोई पारम्परिक विशेषता नहीं प्रदर्शित है । पर देवगढ़ के मन्दिर १२ के गर्भगृह की नवीं दसवीं शती ई० की द्विभुज अम्बिका मूर्तियों में सिवाहन एवं करों में आम्रलुम्बि एवं पुत्र प्रदर्शित हैं (चित्र ५१) । किसी अज्ञात स्थल से प्राप्त ल० नवीं शती ई० की एक द्विभुज मूर्ति पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा (डी ७) में सुरक्षित है (चित्र ५० ) । इस मूर्ति की दुर्लभ विशेषता, परिकर में गणेश, कुबेर, बलराम, कृष्ण एवं अष्टमातृकाओं का उत्कीर्णन है । अम्बिका पद्मासन पर ललितमुद्रा में विराजमान है और उसका सिंहवाहन आसन के नीचे अंकित है । यक्षी के दाहिने हाथ में अभयमुद्रा और बायें में पुत्र है । दाहिने पार्श्व में अम्बिका का दूसरा पुत्र भी उपस्थित है। पीठिका पर एक पंक्ति आकृतियां (अष्ट मातृकाएं ) " बनी हैं। ललितमुद्रा में आसीन इन आकृतियों में से अधिकांश नमस्कार मुद्रा में हैं १ श्वेतांबर ग्रन्थों में चतुर्भुजा यक्षी के करों में आम्रलुम्बि, पाश, अंकुश एवं पुत्र के प्रदर्शन का निर्देश है । २ ज्ञातव्य है कि इस क्षेत्र की जिन-संयुक्त मूर्तियों में सिंहवाहना अम्बिका सामान्यतः द्विभुजा और आम्रलुम्बि एवं पुत्र से युक्त है । ३ अम्बिका के साथ चक्र का प्रदर्शन तान्त्रिक ग्रन्थ से निर्देशित है । ४ जि०इ० दे०, पृ० १०२ ५ जैन ग्रन्थों में अष्ट मातृकाओं के उल्लेख प्राप्त होते हैं । अष्ट मातृकाओं की सूची में ब्रह्माणी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इन्द्राणी, चामुण्डा और त्रिपुरा के नाम हैं । द्रष्टव्य, शाह, यू०पी०, 'आइकानोग्राफी ऑव चक्रेश्वरी, दि यक्षी ऑव ऋषभनाथ', ज०ओ०ई०, खं० २०, अं० ३, पृ० २८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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