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________________ [ जैन प्रतिमाविज्ञान गुजरात - राजस्थान —- इस क्षेत्र की श्वेतांबर परम्परा की जिन मूर्तियों के साथ (६ठी १२ वीं शती ई०) तथा मन्दिरों के दहलीजों पर सर्वानुभूति की अनेक मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । आठवीं नवीं शती ई० में सर्वानुभूति की स्वतन्त्र मूर्तियों का भी उत्कीर्णन प्रारम्भ हुआ । अकोटा की नवीं शती ई० की मूर्तियों में द्विभुज यक्ष हाथों में फल एवं धन का थैला लिये है ।' सातवीं-आठवीं शती ई० में सर्वानुभूति के साथ गजवाहन का चित्रण प्रारम्भ हुआ और दसवीं शती ई० में उसकी चतुर्भुज मूर्तियां उत्कीर्ण हुईं। पर अकोटा और वसंतगढ़ की मूर्तियों में ग्यारहवीं शती ई० तक यक्ष का द्विभुज रूप में ही अंकन हुआ है । २२० ओसिया के महावीर मन्दिर (ल० ९वीं शती ई०) पर सर्वानुभूति की पांच मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । इनमें द्विभुज यक्ष ललितमुद्रा में विराजमान है और उसके बायें हाथ में धन का थैला है। तीन उदाहरणों में यक्ष के दाहिने हाथ में पात्र (या कपाल-पात्र) ४ है और शेष दो उदाहरणों में दाहिना हाथ जानु पर स्थित है। इनमें वाहन नहीं है । बांसी ( राजस्थान) से प्राप्त और विक्टोरिया हाल संग्रहालय, उदयपुर में सुरक्षित एक द्विभुज मूर्ति (८वीं शती ई०) में गजारूढ़ यक्ष के हाथों में फल एवं धन का थैला हैं । " यक्ष के मुकुट में एक छोटी जिन मूर्ति बनी है । घाणेराव के महावीर मन्दिर की मूर्ति (१०वीं शती ई०) में सर्वानुभूति चतुर्भुज है । मूर्ति गूढ़मण्डप के पूर्वी अधिष्ठान पर उत्कीर्ण है । ललितमुद्रा में विराजमान यक्ष के करों में फल, पाश, अंकुश एवं फल हैं। घाणेराव मन्दिर के गूढमण्डप एवं गर्भगृह के दहलीजों पर भी चतुर्भुज सर्वानुभूति की चार मूर्तियां हैं। सभी उदाहरणों में ललितमुद्रा में विराजमान यक्ष की एक भुजा में धन का थैला प्रदर्शित है । इनमें वाहन नहीं उत्कीर्ण है । गूढ़मण्डप के दाहिने और बायें छोरों की दो मूर्तियों में यक्ष के हाथों में अभयमुद्रा (या फल), परशु (या पद्म), पद्म एवं धन का थैला प्रदर्शित हैं। गर्भगृह के दाहिने छोर की मूर्ति के दो हाथों में धन का थैला और शेष दो में अभयमुद्रा एवं फल हैं । बायें छोर की आकृति धन का थैला, गदा, पुस्तक एवं बीजपूरक से युक्त है । सर्वानुभूति के हाथों में गदा एवं पुस्तक का प्रदर्शन कुम्भारिया एवं आबू की मूर्तियों में भी प्राप्त होता है । कुम्भारिया के शान्तिनाथ, महावीर एवं नेमिनाथ मन्दिरों (११ वीं - १२ वीं शती ई०) की जिन मूर्तियों में तथा वितानों एवं भित्तियों पर चतुर्भुज सर्वानुभूति की कई मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । अधिकांश उदाहरणों में गजारूढ़ यक्ष ललितमुद्रा में आसीन है, और उसके हाथों में अभयमुद्रा (या वरद या फल), अंकुश, पाश एवं धन का थैला प्रदर्शित हैं। कई चतुर्भुज मूर्तियों में दो ऊपरी हाथों में धन का थैला है, तथा निचले हाथ अभय - ( या वरद - ) मुद्रा और फल ( या जलपात्र ) युक्त हैं ।" शान्तिनाथ मन्दिर की देवकुलिका ११ की मूर्ति (१०८१ ई०) में गजारूढ़ यक्ष द्विभुज है और उसके दोनों से हाथों में धन का थैला स्थित है । ओसिया की देवकुलिकाओं (११ वीं शती ई०) की दहलीजों पर गजारूढ़ सर्वानुभूति की तीन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । इनमें चतुर्भुज यक्ष ललितमुद्रा में विराजमान है और उसके करों में धन का थैला, गदा, चक्राकार पद्य और फल १ आठवीं शती ई० की एक मूर्ति में यक्ष के करों में पद्म और प्याला भी प्रदर्शित हैं। शाह, यू०पी० पू०नि०, चित्र ३८ ए २ दसवीं - ग्यारहवीं शती ई० की चतुर्भुज मूर्तियां घाणेराव, ओसिया एवं कुम्भारिया से प्राप्त हुई हैं । ३ ये मूर्तियां अर्धमण्डप के उत्तरी छज्जे, गूढमण्डप की दहलीज, भीतरी दीवार एवं पश्चिमी वरण्ड पर उत्कीर्ण हैं । ४ एक भुजा में कपाल- पात्र का प्रदर्शन दिगंबर स्थलों पर अधिक लोकप्रिय था । ५ अग्रवाल, आर० सी०, 'सम इन्टरेस्टिंग स्कल्पचर्स ऑव यक्षज ऐण्ड कुबेर फ्राम राजस्थान, इं० हि०क्वा०, खं० ३३, अं० ३, पृ० २०४ - २०५ ६ शान्तिनाथ मन्दिर की देवकुलिका ९ की जिन मूर्ति में पाश के स्थान पर पुस्तक प्रदर्शित है । ७ कभी-कभी धन के थैले के स्थान पर फल प्रदर्शित है । ८ इस वर्ग की बहुत थोड़ी मूर्तियां मिली हैं । कुछ मूर्तियां कुम्भारिया (नेमिनाथ मन्दिर) एवं विमलवसही - (देवकुलिका ११ ) से मिली हैं । ९ देवकुलिका २, ३, ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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