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________________ यक्ष यक्षी - प्रतिमाविज्ञान ] दिगंबर परम्परा – प्रतिष्ठासारसंग्रह में प्रतिष्ठासारोद्धार में वाहन नर है और हाथों के प्रतिष्ठातिलक में दुघण के स्थान पर धन के भुजा में धन का थैला प्रदर्शित हुआ । गोमेध के नरवाहन एवं पुष्पयान को हिन्दू कुबेर का प्रभाव माना जा सकता है जिसका वाहन नर है और रथ पुष्प या पुष्पकम है। यही पुष्पक अन्ततः राम ने रावण से प्राप्त किया था। वाहन के अतिरिक्त गोमेध पर हिन्दू कुबेर का अन्य कोई प्रभाव नहीं है ।" २१९ गोमेध का वाहन पुष्प कहा गया है किन्तु आयुधों का अनुल्लेख है । ' आयुध मुद्गर (दुधण), परशु, दण्ड, फल, वज्र एवं वरदमुद्रा हैं । * प्रदर्शन का निर्देश है जिसके कारण ही मूर्तियों में नेमि के यक्ष की एक दक्षिण भारतीय परम्परा - दिगंबर ग्रन्थ में त्रिमुख एवं षड्भुज सर्वाण्ह का वाहन लघु मन्दिर है । यक्ष के दक्षिण करों में शक्ति, पुष्प, अभयमुद्रा एवं वाम में दण्ड, कुठार, कटकमुद्रा वर्णित हैं । अज्ञातनाम श्वेतांबर ग्रन्थ में त्रिमुख एवं षड्भुज यक्ष का वाहन नर है तथा उसके करों में कशा, मुद्गर, फल, परशु, बरदमुद्रा एवं दण्ड के प्रदर्शन का निर्देश है । यक्ष-यक्षी लक्षण में गोमेध चतुर्भुज है और उसके हाथों में अभयमुद्रा, अंकुश, पाश एवं वरदमुद्रा वर्णित हैं । यक्ष का चिह्न पुष्प है और शीर्षभाग में धर्मचक्र का उल्लेख है। वाहन गज है । दक्षिण भारत के प्रथम दो ग्रन्थों के विवरण सामान्यतः उत्तर भारतीय दिगंबर परम्परा से मेल खाते हैं, पर यक्ष-यक्षी लक्षण का विवरण स्वतन्त्र है । ७ मूर्ति-परम्परा मूर्तियों में नेमिनाथ के साथ नर पर आरूढ़ त्रिमुख और षड्भुज पारम्परिक यक्ष कभी नहीं निरूपित हुआ । मूर्तियों में नेमि के साथ सदैव गजारूढ़ सर्वानुभूति ( या कुबेर ) " आमूर्तित है । सर्वानुभूति का श्वेतांबर स्थलों पर चतुर्भुज और दिगंबर स्थलों पर द्विभुज रूपों में निरूपण उपलब्ध होता है । दिगंबर स्थलों (देवगढ़, सहेठमहेठ, खजुराहो ) की नेमिनाथ की मूर्तियों में कभी-कभी सर्वानुभूति एवं अम्बिका के स्थान पर सामान्य लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी भो उत्कीर्णित हैं । सर्वानुभूति के हाथ में धन के थैले का प्रदर्शन सभी क्षेत्रों में लोकप्रिय था ।" पर गजवाहन एवं करों में पाश और अंकुश के प्रदर्शन केवल श्वेतांबर स्थलों पर ही दृष्टिगत होते हैं । सर्वानुभूति की सर्वाधिक स्वतन्त्र मूर्तियां गुजरात एवं राजस्थान के श्वेतांबर स्थलों से मिली हैं । १ नेमिनाथजिनेन्द्रस्य यक्षो गोमेघनामभाक् । श्यामवर्णं स्त्रिवक्त्रश्च षट् हस्तः पुष्पवाहनः ॥ प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.६५ २ मास्त्रिवक्त्रो द्रुघणं कुठारं दण्डं फलं वज्रवरी च विभ्रत् । गोमेदयक्ष : क्षितशंखलक्ष्मापूजां नृवाहोऽहंतु पुष्पयानः ॥ प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१५० ३ धनं कुठारं च बिभ्रति दण्डं सव्यैः फलैर्वज्रवरो च योऽन्यैः । प्रतिष्ठातिलकम् ७.२२, पृ० ३३७ पू०नि०, पृ० ५२८-३९; भट्टाचार्य, बी० सी० पू०नि०, पृ० ११५-१६ ४ बनर्जी, जे० एन० ५. केवल एक ग्रन्थ में धन के प्रदर्शन का उल्लेख है। इस विशेषता को भी हिन्दू कुबेर से सम्बन्धित किया जा सकता है । ६ रामचन्द्रन, टी० एन० ७ द्विभुज यक्ष की मूर्ति Jain Education International पू०नि०, पृ० २०८-०९ एलोरा की गुफा ३२ में उत्कीर्ण है । इसमें गजारूढ़ यक्ष के हाथों में फल एवं धन का थैला प्रदर्शित हैं । यक्ष के मकुट में एक छोटी जिन आकृति उत्कीर्ण हैं । ८ विविधतीर्थकल्प ( पृ० १९) में अम्बिका के साथ गोमेध के स्थान पर कुबेर का उल्लेख है और उसका वाहन नर बताया गया है। मूर्तियों में नेमिनाथ के यक्ष यक्षी के रूप में सदैव सर्वानुभूति ( या कुबेर ) एवं अम्बिका ही निरूपित हैं । ९ धन के थैले का प्रदर्शन ल० छठी शती ई० में ही प्रारम्भ हो गया। शाह, यू०पी०, अकोटा ब्रोन्जेज, पृ० ३१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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