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________________ [ जैन प्रतिमाविज्ञान जिन मूर्तियों के उल्लेख किये हैं जिनमें आयागपटों के उल्लेख विशेष महत्वपूर्ण हैं । इन्होंने कुछ जिन मूर्तियों की महावीर से गलत पहचान की है । स्मिथ ने सिंहासन के सूचक सिहों को महावीर का सिंह लांछन मान लिया है।' डी० आर० भण्डारकर पहले भारतीय विद्वान् हैं जिन्होंने जैन प्रतिमाविज्ञान पर कुछ कार्य किया है। ओसियारे के मन्दिरों पर लिखे लेख में उस स्थल के जैन मन्दिर का भी उल्लेख है। दो अन्य लेखों में भण्डारकर आधार पर मुनिसुव्रत के जीवन की दो महत्वपूर्ण घटनाओं (अश्वावबोध और शकुनिका विहार) का चित्रण करनेवाले पट्ट एवं जिन-समवसरण की विस्तृत व्याख्या की है। ए० के० कुमारस्वामी ने जैन कला पर एक लेख लिखा है, जिसमें जैन कल्पसूत्र के कुछ चित्रों के विवरण भी हैं। यक्षों पर लिखी पुस्तक में कुमारस्वामी ने संक्षेप में जैन धर्म में भी यक्ष पूजा के प्रारम्भिक स्वरूप की विवेचना की है। यह अध्ययन जैन धर्म में यक्ष पूजा की प्राचीनता और उसके प्रारम्भिक स्वरूप के अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। एफ० कीलहान और एन० सी० मेहता ने क्रमशः नेमि और अजित की विदेशी संग्रहालयों में सुरक्षित मूर्तियों पर लेख लिखे हैं। जैन कला पर आर० पी० चन्दा के भी कुछ महत्वपूर्ण कार्य हैं। इनमें पहला राजगिर के जैन कलावशेष से सम्बन्धित है । लेख में नेमि की एक लांछनयुक्त गुप्तकालीन मूर्ति का उल्लेख है । यह मूर्ति लांछनयुक्त प्राचीनतम जिन मूर्ति है। एक अन्य लेख में मोहनजोदड़ो की मुहरों और हड़प्पा की एक नग्न मूर्तिका के उत्कीर्णन में प्राप्त मुद्रा (जो कायोत्सर्ग के समान है) के आधार पर सैंधव सभ्यता में जैन धर्म की विद्यमानता की सम्भावना व्यक्त की गई है। यह सम्भावना कायोत्सर्ग-मुद्रा के केवल जैन धर्म और कला में ही प्राप्त होने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। चंदा की ब्रिटिश संग्रहालय की मूर्तियों पर प्रकाशित पुस्तक में संग्रहालय की जैन मूर्तियों के भी उल्लेख हैं। इनमें उड़ीसा से मिली कुछ जैन मूर्तियाँ महत्वपूर्ण हैं। एच० एम० जानसन ने एक लेख में त्रिषष्टिशलाफापुरुषचरित्र के आधार पर २४ यक्ष-यक्षियों के लाक्षणिक स्वरूपों का निरूपण किया है।११ मुहम्मद हमीद कुरेशी ने बिहार और उड़ीसा के प्राचीन वास्तु अवशेषों पर एक पुस्तक लिखी है ।१२ इसमें उड़ीसा की उदगिरि-खण्डगिरि जैन गुफाओं की सामग्री का विस्तृत विवरण है। जैन मूर्तिविज्ञान की दृष्टि से नवमुनि एवं बारभुजी गुफाओं की जिन एवं यक्षी मूर्तियों के विवरण विशेष महत्व के हैं । १ वही, पृ० ४९, ५१-५२ २ भण्डारकर, डी० आर०, 'दि टेम्पल्स ऑव ओसिया', आ०स०ई०ए०रि०, १९०८-०९, पृ० १००-१५ ३ भण्डारकर, डी० आर०, 'जैन आइकानोग्राफी', आ०स०ई०ए०रि०, १९०५-०६, पृ० १४१-४९; इण्डि० एण्टि०, खं० ४०, पृ० १२५-३० ४ कुमारस्वामी, ए० के०, 'नोट्स ऑन जैन आर्ट', जर्नल ऑव दि इण्डियन आर्ट ऐण्ड इण्डस्ट्री, खं० १६, अं० १२०, पृ० ८१-९७ ५ कुमारस्वामी, ए० के०, यक्षज, दिल्ली, १९७१ (पु० मु०) ६ कीलहान, एफ०, 'ऑन ए जैन स्टैचू इन दि हानिमन म्यूजियम', ज०रा०ए०सो०, १८९८, पृ०१०१-०२ ७ मेहता, एन० सी०, 'ए मेडिवल जैन इमेज ऑव अजितनाथ-१०५३ ए० डी०', इण्डि० एण्टि०, खं० ५६, पृ० ७२-७४ ८ चंदा. आर० पी०, 'जैन रिमेन्स ऐट राजगिर', आ०स०ई०ऐ०रि०, १९२५-२६, पृ० १२१-२७ ९ चंदा, आर० पी०, 'सिन्ध फाइव थाऊजण्ड इयर्स एगो', माडर्न रिव्यू, खं० ५२, अं० २, पृ० १५१-६० १० चंदा, आर० पी०, मेडिबल इण्डियन स्कल्पचर इन दि ब्रिटिश म्यूजियम, लादन, १९३६ ११ जानसन, एच० एम०, 'श्वेताम्बर जैन आइकानोग्राफी', इण्डि० एण्टि०, खं० ५६, पृ० २३-२६ १२ कुरेशी, मुहम्मद हमीद, लिस्ट ऑव ऐन्शण्ट मान्युमेण्ट्स इन दि प्राविन्स ऑव बिहार ऐण्ड उड़ीसा, कलकत्ता, १९३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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