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________________ १९४ [ जैन प्रतिमाविज्ञान (११) मानवी (या गौरी) यक्षी शास्त्रीय परम्परा मानवी (या गौरी) जिन श्रेयांशनाथ की यक्षी है। श्वेतांबर परम्परा में चतुर्भुजा मानवी (या श्रीवत्सा या विद्युन्नदा) का वाहन सिंह और दिगंबर परम्परा में चतुर्भुजा गौरी का वाहन मृग है। श्वेतांबर परम्परा-निर्वाणकालका में सिंहवाहना मानवी के दाहिने हाथों में वरदमुद्रा एवं मुद्गर और बायें में कलश एवं अंकुश हैं।' त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में कलश के स्थान पर वज्र, प्रवचनसारोद्धार में मुद्गर के स्थान पर पाश, पद्मानन्दमहाकाव्य में कलश और अंकुश के स्थान पर नकुल और अक्षसूत्र, आचारदिनकर में दो वामकरों में अंकुश" और देवतामूर्तिप्रकरण में कलश के स्थान पर नकुल के प्रदर्शन के उल्लेख हैं। दिगंबर परम्परा-प्रतिष्ठासार संग्रह में मृगवाहना गौरी के केवल दो हाथों के आयुधों का उल्लेख है जो पद्म और वरदमुद्रा हैं। प्रतिष्ठासारोद्धार में गौरी के करों में मुद्गर, अब्ज, कलश एवं वरदमुद्रा का उल्लेख है।' अपराजितपृच्छा में मुद्गर एवं कलश के स्थान पर पाश एवं अंकुश प्रदर्शित हैं। यक्षी का नाम एवं एक हाथ में पद्म । का प्रदर्शन ९ वी महाविद्या गौरी का प्रभाव है।" दक्षिण भारतीय परम्परा-दिगंबर ग्रन्थ में नन्दी पर आरूढ़ चतुर्भुजा यक्षी अर्धचन्द्र से युक्त है। उसके दक्षिण करों में जलपात्र एवं अभयमुद्रा और वाम में वरदमुद्रा एवं दण्ड का उल्लेख है। यक्षी का निरूपण ईश्वर यक्ष से प्रभावित है । अज्ञातनाम श्वेतांबर ग्रन्थ में हंसवाहना यक्षी द्विभुजा है और उसके करों में कशा एवं अंकुश का वर्णन है । यक्ष-यक्षी-लक्षण में चतुर्भुजा यक्षी का वाहन मृग है और उसके हाथों में उत्तर भारतीय दिगंबर परम्परा के अनुरूप पद्य, मुद्गर (? मुनिर), कलश एवं वरदमुद्रा वर्णित हैं।" मूर्ति परम्परा यक्षी की तीन स्वतन्त्र मूर्तियां (दिगंबर परम्परा) मिली हैं । दो मूर्तियां क्रमशः देवगढ़ (मन्दिर १२, ८६२ई०) एवं बारभुजी गुफा के सामूहिक अंकनों और एक मालादेवी मन्दिर (ग्यारसपुर, म० प्र०) में उत्कीर्ण हैं । देवगढ़ में श्रेयांश १ मानवी देवीं गौरवणी सिंहवाहनां चतुर्भुजां वरदमुद्गरान्वितदक्षिणपाणि कलशांकुशयुक्तवामकरां चेति । निर्वाणकलिका १८.११; मन्त्राधिराजकल्प ३.५८ २.."वामी च बिभ्रती पाणी कुलिशांकुशधारिणौ । त्रिश०पु०च०४.१.७८६-८७ ३ "वरदपाशयुक्तदक्षिणकरद्वया कलशांकुशयुक्तवामकरद्वया । प्रवचनसारोद्धार ११.३७५, पृ० ९४ ४ ""वामौ तु सनकुलाऽक्षसूत्रौ श्रेयांसशासने । पद्मानन्दमहाकाव्य : परिशिष्ट-श्रेयांशनाथ २० ५ ""वामं हस्तयुगं तटांकुशयुत" । आचारविनकर ३४, पृ० १७७ ६ अंकुशं वरदं हस्तं नकुलं मुद्ग(लं ? र) तथा । देवतामूर्तिप्रकरण ७.३९ ७ पद्महस्ता सुवर्णाभा गौरीदेवी चतुर्भुजा । जिनेन्द्रशासने मक्ता वरदा मृगवाहना ॥ प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.३८ ८ समुद्गराब्जकलशां वरदां कनकप्रभाम् । प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१६५; द्रष्टव्य, प्रतिष्ठातिलकम् ७.११, पृ०३४४ ९ पाशांकुशाब्जवरदा कनकामा चतुर्भजा। सा कृष्णहरिणारूढा कार्या गौरी च शान्तिदा ॥ अपराजितपच्छा २२१.२५ १० ज्ञातव्य है कि हिन्दू गौरी की भी एक भूजा में पद्म प्रदर्शित है। ११ रामचन्द्रन, टी० एन०, पू०नि०, पृ० २०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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