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यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान ]
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. (११) ईश्वर यक्ष शास्त्रीय परम्परा
ईश्वर' जिन श्रेयांशनाथ का यक्ष है । दोनों परम्पराओं में बृषभारूढ़ ईश्वर त्रिनेत्र एवं चतुर्भुज है ।
श्वेतांबर परम्परा निर्वाणकलिका में ईश्वर के दक्षिण करों में मातुलिंग एवं गदा और वाम में नकूल एवं अक्षसूत्र वर्णित है । अन्य ग्रन्थों में भी यही लाक्षणिक विशेषताएं प्राप्त होती हैं। केवल देवतामूर्तिप्रकरण में नकुल और अक्षसूत्र के स्थान पर अंकुश और पद्म के प्रदर्शन का निर्देश है।
दिगंबर परम्परा-प्रतिष्ठासारसंग्रह में ईश्वर के तीन हाथों में फल, अक्षसूत्र एवं त्रिशूल का उल्लेख है, पर चौथे हाथ की सामग्री का अनुल्लेख है।" प्रतिष्ठासारोद्धार एवं अपराजितपुच्छा में चौथे हाथ में क्रमशः दण्ड और वरदमुद्रा के प्रदर्शन का निर्देश है।
दोनों परम्पराओं में यक्ष का नाम, वाहन (वृषभ) एवं उसका त्रिनेत्र होना शिव से प्रभावित है। दिगंबर परम्परा में भुजाओं में त्रिशूल एवं दण्ड के उल्लेख इसी प्रभाव के समर्थक हैं ।
दक्षिण भारतीय परम्परा-दिगंबर ग्रन्थ में नन्दी पर आरूढ़ एवं अर्धचन्द्र से शोभित चतुर्भज ईश्वर के वामकरों में त्रिशूल एवं दण्ड और दक्षिण में कटक-एवं-अभय-मुद्रा का वर्णन है। श्वेतांबर ग्रन्थों में वृषभारूढ़ यक्ष चतुर्भुज है। अज्ञातनाम ग्रन्थ में ईश्वर के करों में शर, चाप, त्रिशूल एवं दण्ड का उल्लेख है। यक्ष-यक्षी-लक्षण में यक्ष को त्रिनेत्र और फल, अभयमुद्रा, त्रिशूल एवं दण्ड से युक्त बताया गया है । उपर्युक्त से स्पष्ट है कि दोनों परम्पराओं में ईश्वर का स्वरूप उत्तर भारतीय दिगंबर परम्परा से प्रभावित है।
ईश्वर यक्ष की एक भी स्वतन्त्र या जिन-संयक्त मूर्ति नहीं मिली है।
१ प्रवचनसारोद्धार और आचारदिनकर में यक्ष को क्रमशः मनुज और यक्षराज नामों से सम्बोधित किया गया है। २ ईश्वरयक्षं धवलवर्ण त्रिनेत्रं वृषभवाहनं चतुर्भुजं मातुलिंगगदान्वितदक्षिणपाणि नकुलकाक्षसूत्रयुक्तवामपाणि चेति ।
निर्वाणकलिका १८.११ ३ त्रिश०पु०च० ४.१.७८४-८५; पद्मानन्दमहाकाव्य : परिशिष्ट-श्रेयांशनाथ १९-२०; आचारदिनकर ३४, पृ०१७४;
मन्त्राधिराजकल्प ३.५ ४ मातुलिंगं गदां चैवांकुशं च कमलं क्रमात् । देवतामूर्तिप्रकरण ७.३८ ५ ईश्वरः श्रेयशो यक्षस्त्रिनेत्रो वृषवाहनः । ___ फलाक्षसूत्रसंयुक्तः सत्रिशूलश्चतुर्भुजः ।। प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.३७ ६ त्रिशूलदण्डान्वितवामहस्तः करेऽक्षसूत्रं त्वपरे फलं च । प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१३९; ___ द्रष्टव्य, प्रतिष्ठातिलकम् ७.११, पृ० ३३४ ७ त्रिशूलाक्षफलवरा यक्षेट्श्वेतो वृषस्थितः । अपराजितपृच्छा २२१.४९ ८ रामचन्द्रन, टी०एन०, पू०नि०, पृ० २०३ ९ खजुराहो के पार्श्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह एवं मण्डप की भित्तियों पर नन्दीवाहन से युक्त कई चतुर्भुज मूर्तियां
उत्कीर्ण हैं । जटामुकुट से सज्जित देवता के करों में वरदाक्ष (या पद्म), त्रिशूल, सर्प एवं कमण्डलु प्रदर्शित हैं। लक्षणों के आधार पर देवता की सम्भावित पहचान ईश्वर यक्ष से की जा सकती है। पर पार्श्वनाथ मन्दिर की मित्तियों की सम्पूर्ण शिल्प सामग्री के सन्दर्भ में देवता को शिव का अंकन मानना ही अधिक प्रासंगिक एवं उचित होगा।
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