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जिन - प्रतिमाविज्ञान ]
सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं । पीठिका पर आठ ग्रहों की मी मूर्तियां हैं ।" श्वेतांबर मूर्तियां मिली हैं । एक उदाहरण में पाव कायोत्सर्ग में निरूपित हैं 12 सर्पंफण के छत्र से युक्त नाग- नागी चित्रित हैं । दूसरी मूर्ति में पीठिका पर मूर्तियां हैं।
अकोटा से नवीं दसवीं शती ई० की भी पांच मूर्तियां मिली हैं । 3 दो मूर्तियों में ध्यानमुद्रा में विराजमान पाखं के दोनों ओर दो कायोत्सर्गं जिन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । पार्श्ववर्ती जिनों के समीप अप्रतिचक्रा एवं वैरोट्या महाविद्याओं की भी मूर्तियां हैं। सभी उदाहरणों में पीठिका पर ग्रहों एवं सर्वानुभूति और अम्बिका की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । एक उदाहरण में सर्वानुभूति एवं अम्बिका सर्पफण के छत्र से युक्त हैं । एक उदाहरण के अतिरिक्त पार्श्ववर्ती कायोत्सर्ग जिन मूर्तियां सभी में उत्कीर्ण हैं । अकोटा को दसवीं ग्यारहवीं शती ई० की एक अन्य मूर्ति के परिकर में सात जिनों और पीठिका पर ग्रहों एवं सर्वानुभूति और अम्बिका की मूर्तियां हैं ।"
९८८ ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति भड़ौच से मिली है । ' मूलनायक के पावों में दो कायोत्सर्ग जिनों और परिकर में अप्रतिचक्रा एवं वैरोट्या महाविद्याओं की मूर्तियां हैं। पीठिका पर नवग्रहों एवं यक्ष-यक्षी की मूर्तियां हैं । यक्ष की मूर्ति खण्डित हो गई है, पर यक्षी अम्बिका ही है । १०३१ ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति वसन्तगढ़ से मिली है । मूर्ति के परिकर में पांच जिनों एवं चार द्विभुज देवियों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । पीठिका पर सर्वानुभूति एवं अम्बिका और ब्रह्म"शान्ति यक्ष की मूर्तियां हैं ।
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अकोटा से मी आठवीं शती ई० की दो और उनकी पीठिका पर नमस्कार- मुद्रा में आठ ग्रहों एवं सर्वानुभूति और अम्बिका की
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ओसिया की देवकुलिका १ पर ग्यारहवीं शती ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति है । यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका ही हैं । १०१९ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति ओसिया के बलानक में सुरक्षित है । सिंहासन के छोरों पर सर्पफणों की छत्रावली वाले द्विभुज यक्ष-यक्षी निरूपित हैं। दसवीं- ग्यारहवीं शती ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति भरतपुर से मिली है और सम्प्रति राजपूताना संग्रहालय, अजमेर (१७) में सुरक्षित है। यहां पार्श्व के आसन के नीचे और पृष्ठ भाग में सर्प की कुण्डलियां प्रदर्शित हैं । मूलनायक के दोनों ओर तीन सर्पफणों छत्रों वाले चामरघर सेवक आमूर्तित हैं । चामरधरों के ऊपर तीन सर्प फणों के छत्रों वाली पार की चार अन्य छोटी मूर्तियां भी उत्कीर्ण हैं । यक्ष-यक्षो सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं । दो ध्यानस्थ मूर्तियां राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली में हैं । एक मूर्ति नवीं शती ई० की है और दूसरी १०६९ ई० की है । इनमें यक्ष - यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका ही हैं। साथ ही दो पार्श्ववर्ती जिनों, नाग- नागी एवं नवग्रहों की भी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं ।" लिल्वादेवा (गुजरात) से नवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य की कई मूर्तियां मिली हैं । ये मूर्तियां सम्प्रति बड़ौदा संग्रहालय में सुरक्षित हैं ।" इनमें पार्श्व के साथ चामरघर सेवकों, आठ या नौ ग्रहों एवं सर्वानुभूति और अम्बिका की तयां उत्कीर्ण हैं । एक मूर्ति (१०३६ ई०) में मूलनायक के दोनों ओर दो जिन भी आमूर्तित हैं । "
कुम्भारिया के जैन मन्दिरों में भी कई मूर्तियां हैं। महावीर मन्दिर की देवकुलिका १५ की मूर्ति (११ वीं शती ई०) में सिंहासन के दोनों ओर दो जिनों एवं मध्य में शान्तिदेवी की मूर्तियां हैं। परिकर में दो अन्य जिन मूर्तियां
१ शाह, यू० पी०, 'ब्रोन्ज होर्ड फ्राम वसन्तगढ़', ललितकला, अं० १-२, पृ० ६०
२ शाह, यू०पी०, अकोटा ब्रोन्जेज, पृ० ४४, ४९
३ वही, पृ० ५२-५७
५ शाह, यू०पी० पू०नि०, पृ० ६०
८ क्रमांक ६८.८९, ६६.३७
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४ एक मूर्ति में यक्ष-यक्षी की पहचान सम्भव नहीं है । ६ वही, चित्र ५६ ए ७ वही, चित्र ६३ ए
९ शर्मा, ब्रजेन्द्रनाथ, 'अन्पब्लिश्ड जैन ब्रोन्जेज़ इन दि नेशनल म्यूज़ियम', ज०ओ०ई०, खं०१९, अं०३, पृ०२७५ ७७ १० शाह, यू०पी०, 'सेवेन ब्रोन्जेज़ फ्राम लिल्वादेवा', बु०ब०स्यू०, खं० ९, भाग १ - २, पृ० ४४-४५
११ वही, पृ० ४९-५०
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