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________________ मल्लराष्ट्र : ५१ प्रभावित हुआ कि उनको संघ के साथ मांसाहारी ( शूकर मादव ) भोजन के लिए आमन्त्रित किया जिसे स्वीकार कर अपने भिक्षु संघ के साथ वहां जाकर बुद्ध ने शूकर-मार्दव ग्रहण किया। मांसाहार को महावीर बहुत निन्दनीय मानते थे। बुद्ध के इस कृत्य के लिए महावीर और उनके अनुयायियों ने वैशाली में घूम-घूम कर बुद्ध एवं सिंहभद्र सेनापति की घोर निन्दा की । महावीर एवं बुद्ध में विद्यमान प्रतिद्वन्द्विता एवं कटुता की भावना की पुष्टि हर्मन याकोबी' ने भी की है। परन्तु दोनों महापुरुषों के प्रत्यक्ष साक्षात्कार की सम्भावना को स्वीकारा नहीं जा सकता है । यदि दोनों का साक्षात्कार हुआ होता तो निश्चित ही ऐसी घटना अवश्य हुई होती जिसका दूरगामी एवं प्रत्यक्ष परिणाम दृष्टिगोचर हआ होता। इसकी भी सम्भावना है कि यदि साक्षात्कार हुआ होता तो वाद-विवाद में जय-पराजय भी हो सकती थी जो दोनों की प्रतिष्ठा के लिए घातक सिद्ध हो सकती थी जिसका उनके अनुयायियों एवं सामान्य जनों के बीच उनके धर्म प्रचार-प्रसार पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता, उनकी मर्यादा को ठेस पहुँच सकती थी। अतः यही कहा जा सकता है कि दोनों महापुरुषों का साक्षात्कार कभी नहीं हुआ था। महावीर एवं बुद्ध के साक्षात्कार विवेचन के पश्चात् हम उनके कैवल्य-प्राप्ति से लेकर निर्वाण-प्राप्ति पर्यन्त वे किन-किन नगरों में वर्षाऋतु में वास किये, इसका अध्ययन करेंगे जिससे यह ज्ञात हो सके कि उनके चातुर्मास और वर्षावास से सम्बद्ध नगर कौन-कौन थे और उन्होंने किन नगरों को प्रमुखता दी ? कठोर अहिंसावादी होने के कारण वर्षा काल में जीव-जन्तुओं, प्राकृतिक वनस्पतियों की अधिकता के कारण इस ऋतु में हिंसा की सर्वाधिक सम्भावना होती है। इससे बचने के लिए तथा नदियों आदि में बाढ़ के कारण आवागमन की सुविधा न होने के कारण परिस्थितिवश एक स्थान पर वास करने की परम्परा जैन और बौद्ध धर्म में प्रचलित हुई । इस प्रवास को जैन धर्म में 'चातुर्मास' और बौद्ध धर्म में वर्षावास कहकर सम्बोधित किया जाता था। जैनों का 'चातुर्मास' श्रावण से कार्तिक तक एवं बौद्धों का वर्षावास श्रावण से आश्विन तक होता था। १. याकोबी, हर्मन, जैनिज्म, इनसाइक्लोपीडिया आव रिलिजन एण्ड एथिक्स, खण्ड ७, प्र० ४७७, न्यूयार्क १९८० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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